पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१३२

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+ ++ + + + भक्तिसुधास्वाद तिलक। राजा होके श्रीचन्द्रहासजी ने अपने राज्य में भगवद्भक्ति और प्रेमभाव का बड़ा ही प्रचार किया। (७१) टीका । कवित्त । (७७२) रहे जाके देश सो नरेश कछु पाव नाहीं बांह वल जोरि दियो सचिव पठाइके। श्रायो घर जानि,कियो भति सनमान, सो पिछान लियो बहै बाल मारो छल आइ के ।। दई लिखि चिट्ठी, जाबो मेरे सुत हाथ दीजे, कीजे वही वात जाको श्रायोले लिखाइके गए पुर पास बाग सेवामति पागकार, भरी हग नींद नेकु सोयो सुख पाइकै ॥६२॥ (५६७) वात्तिक तिलक । चन्दनावती का राजा कलिन्द जिस महाराज (कुन्तलपुरवाले) के राज्य में था, उस महाराज को अव श्रीचन्द्रहासजी के यहां से कर नहीं पहुँचने लगा, क्योंकि साधुसेवा ही में इनका पैसा लग जाता था, कौड़ी बचती न थी। इसी से उसने कुछ सेना समेत अपने मन्त्री धृष्टबुद्धि को कर लेने के लिये चन्दनावती में भेजा । राजा कलिन्द तथा श्रीचन्द्र- हासजी ने अपने घर में आया हुभा जान करके) उसका बड़ा भादर सत्कार किया। धृष्टबुद्धि ने पहिचान लिया कि यह तो वही लड़का है जिसके बधका प्रबन्ध किया था, वह क्रोध से जलभुनकर सोचने लगा कि अब "छल से इसका बध करो। कुछ बातेंवनाकर चन्द्रहासजी को एक पत्र दे धृष्टबुद्धि ने अपने घर भेजा कि यह पाती मेरे पुत्र मदन के हाथ में दीजिये और कहिये कि जो कुछ इसमें लिखा है सो कृपा करके शीघ्र करवा दीजिये। पत्र ले, उस ग्राम में पहुँच, एक सुन्दर बाटिका में, जो उसी मन्त्री धृष्टबुद्धि की थी, ठहरके इनने श्रीशालग्रामजी की सेवा बड़े प्रेम से की, और प्रसाद पाके श्रीराम भरोसे निईन्द विश्राम किया। हर इच्छा से उनको नींद था गई सुख से सो गए। (७२) टीका । कवित्त । (७७१) खेलति सइलिनि मों, शाह वाहिवाग मांझ करि अनुराग, भई न्यारी,