पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१३४

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MA H ARASHTRI-Hindi RisinAmmube HTHH HHHHH भक्तिसुधास्वाद तिलक । .................. विष, घरी एक मांझ ब्याह उभरायो हैं। करी ऐसी रीति, डारे बड़े नृप जीति, श्री देतगई बीति, चाव पार पै न पायो है । आयो पिता नीच, सुनि धूमि आई मीच मानो, बानी लखि दूलह को, शूल सरसायो है ॥६४ ॥ (५६५) ___ वात्तिक तिलक । श्रीचन्द्रहास जी उठे और ठिकाने पर पहुँचके चिट्ठी दी, मदनसेन बहुत ही प्रसन्न हुआ उसने इनको अपने गले से लगा लिया और अपना हर्ष प्रकट किया, बड़ी त्वरा से, बाह्मणों को बुला, लग्न सोधके भगवत कृपा से एकही घड़ी के भीतर अपनी बहिन विषया का विवाह चन्द्रहास से कर दिया। सारी रात आनन्द मौर दान पुण्य में व्यतीत हुई ऐसा उत्सव किया कि अपने से बड़े २ राजासे भी बढ़के, और तबभी महोत्सव से अघाता न था। प्रिय पाठक ! देखिये-- __ "विष देते विषया भयो, राम गरीवनिवाज ।।" उसका बाप, नीच धृष्टबुद्धि, आने पर यहां यह रंग, और चन्द्रहास- जी को दुलहा वेष में देख, अतिशय शूल पा, अत्यन्त मूञ्छित हो गया। “पर दुख लागि असन्त अभागी।।" ( ७४ ) टीका । कवित्त । ( ७६९ ) बैव्यो लै इकान्त, “सुत । करी कहा भ्रान्त यह ?" कह्यो सो नितान्त, कर पाती लै दिखाई है। बांचि अांच लागी, मैं तो बड़ोई अभागी। ऐ पै मारो मति पागी बेटी रोड़ हू सुहाई है ।। बोलि नीच जाती, वात कही "तुम जावो मठ, आवै तहां कोऊ, मारि डारो मोहि भाई है।" चन्द्रहास जू सों भाष्यो “देवि पूजि भावो श्राप मेरी कुलपूज, सदा रीति चलि भाई हैं ॥६५॥ (५६४) वार्तिक तिवक । परहितघृतमाखी दुर्मति क्रोधी धृष्टबुद्धि ने अपने पुत्र से एकान्त में पूछा कि “रे! तूने यह क्या गड़बड़ किया?" मदनसेन ने पाती दिखा दी। पढ़के कुबुद्धि के तन में प्रागसी लग गई, यहां तक कि बेटी का विधवा रहना तक, वह प्रभागा अच्छा समझा।