पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१४६

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NAAM Arthd anit- भक्तिसुधास्वाद तिलक 1 १२७ जान, कौखों से उनकी रक्षा की । इसी से, श्रीमारुतिजी का “अर्जुन सहायकारी” ऐसा ख्यात हुया॥ पाण्डवों की भक्ति की प्रशंसा किससे हो सकती है । "तुलसी सकलसुकृत सुख लागे रामभक्ति के पाछे ॥" (३३।३६) श्रीयुधिष्ठिरादि * [पाण्डव] श्रीपाण्डव पांचों भाइयों में से, श्रीअर्जुनजी की कथा तो अभी अभी निवेदन की जा चुकी है। श्रीयुधिष्ठिरजी महाराज, श्रीभीमसेनजी. श्रीनकुलजी, और श्रीसहदेवजी, ये चारों श्रीयादवेन्द्रजी के फुफेरे भाई थे। वे श्रापको पूर्णब्रह्म तथा अपना स्वामी मानते थे। श्रीयुधिष्ठिरजी और श्रीभीमसेन को (जो बड़े थे) आप प्रणाम, तथा श्रीनकुलजी और श्रीसहदेवजी (जो छोटे थे) आपको दण्डवत् किया करते थे। श्रीयुधिष्ठिरजी की महिमा कौन कह सके कि जो साक्षात "धर्म" के ही अवतार थे। महाभारत में भगवत् की भक्तवत्सलता और बारम्बार सहायता के साथ पाण्डवों का सुयश भी प्रसिद्ध है ही ॥ "कहां न प्रभुता करी ? हे प्रभु ! तुम कहां न प्रभुता करी ॥" (३७३८) गजेन्द्रजी,ग्राहजी। (कल्पान्तभेद से एक कथा) श्वेतद्वीप में एक सर में श्रीदेवलमुनि स्नान कर रहे थे, हाहा नाम गन्धर्व ने, खेल से पानी के भीतर, ग्राह की नाई उनका पांव पकड़ लिया, इसलिये मुनि के शाप से वहीं प्राह हुआ। बड़ों से हसी खेल का फल ऐसा ही है। . इन्द्रदवन राजा अपने मन्त्री को राज्य देकर पहाड़ पर जा मौनी हो भजन करता था, भक्तराज ऋषीश्वर श्रीअगस्त्यजी महाराज कृपा कर वहां गए, पर उसने अभिमान से आपका आदर सत्कार नहीं किया फलतः मुनिजी के शाप से गजेन्द्र हुआ। ओह अभिमान से किसका सर्वनाश न हुआ ? |

  • श्रीयुधिष्ठिर १, श्रीभीम' २, श्रीअर्जुन ३, श्रीनकुल ४, श्रीसहदेव ५, ।।