पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१४७

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श्रीभक्तमाल सटीका (कल्पान्तभेद से दूसरी कथा) मरु देश के गजा के यज्ञ में भगवद्भक्त दो भाई ब्राह्मणों में, एक ब्रह्मा दूसरे होता हुए, होता ने बहुत परन्तु ब्रह्मा ने उनकी अपेक्षा थोड़ी दक्षिणा पायी, श्रतएव ब्रह्मा ने दोनों दक्षिणा इकट्ठा मिलाके श्राधा- आधा बांट लेना चाहा। हाता ने न माना । ब्रह्मा ने शाप दिया "तुम गंडकी में ग्राह हो, एवं होता ने भी शाप दिया तुम गज हो।" आपस की लड़ाई और लोभ के लाभ हैं तो ये हैं । सारांश यह कि ये दोनों वैष्णव वा ब्राह्मण थे और शाप से एक ग्राह दूसरे गजेन्द्र हुए थे। एक दिन संयोगवश गजेन्द्र उसी और अपनी इथिनियों और पट्टों के समेत जल पीने गया कि जहां वही ग्राह रहता था, ग्राह ने गज का पांव पकड़ लिया, ग्राह अपनी ओर जल में, गजजी अपनी ओर थल में खींचते थे, कुछ कालपर्यन्त और हाथियों ने गजेन्द्रजी की सहायता की, परन्तु अंत को हार मान के उनको अकेले असहाय छोड़ के चले गए। "कोन काको मीत कुममय कोन काको मीत" दो० "हरे चर, तापहि वर, फरे पसारहिं हाथ। तुलसी स्वास्थ मीन जग, परमारथ रधुनाथ ॥" सहस्र वर्षपर्यन्त लड़ाई होती रही। अंत को ग्राह प्रबल धगज को नदी में ले चला, केवल सूंडमात्र बाहर रह गयी । अव गज का ध्यान दीनरक्षक आस्तहरन की ओर थाया। “सुख समय तो दुइ निशान सबके बार बाजे । दुख समय दशरथ के लाल तू गरीवनिवाजे ॥" श्रीगजेन्द्रजी ने भगवान की शरण ली और एक कमल का फूल तोड़कर श्रीवैकुण्ठनाथ को अर्पण करके पुकारा:- __ “यः कश्चनशो बलिनोऽन्तकोरंगात् प्रचण्डदेगादभिधावतो भृशम् । भीनं प्रपन्न परिपाति यद्धयान्मृत्युः प्रधावत्यरणं तमीमहि ॥ नायं वेदस्वमाप्मानं यच्छक्त्याहं धियाहतम् । तं दुरत्ययमाहात्म्य भगवंतं नाम्यहम् ॥"