पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१४९

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१३० 4... Mame +14- 0 1 -0101 . MERIRA M .IN श्रीभक्तमाल सटीक । जाने का विचार करते थे, तब इस प्रकार की प्रार्थनाआप किया करती। _आपकी यह व्याकुलता और विकलता देखके प्रभु की आंखों में प्रेम अशु भर आया, और श्रीदारका की यात्रा को छोड़ दिया, आप इस प्रकार से आनंदकंद को रथ पर से उतार के अपने पास लौटा लाई ॥ सारांश यह कि श्रीकृष्ण भगवान ही श्रापके धन, जन, तन, प्राण, सब कुछ थे॥ जब हरि इस जगत् को छोड़ गोलोक को गए, तो यह समाचार सुनने के साथ ही, श्रीकुन्तीजी भी शरीर परित्याग करके हरि के पास जा पहुँचीं॥ देखिये 'प्रेम का पन निवाहना इसको कहते हैं ऐसे पन का नाम सच्चापन है॥ दो. “मीन श्रादि के प्रेम को, कविगण कियो वखान । प्रीति सो सांचि सराहिये, विछुरत निसरपान ॥ १॥" "श्राली ! मैंने यह सुनी, पह फाटत पिय गौन । 'पह' में, हिय में है रही, “पहिले फाटै कौन ?॥२॥" नारायण अति कठिन है, प्रेम नगर को बाट । या मारग सो पग धरै, प्रथम सीस दे काट ॥३॥ (४०)श्रीद्रौपदीजी। (८०) टीका । कवित्त । (७६३) द्रौपदी सती की बात कहै ऐसो कौन पटु १ खेचत ही पट, पट कोटि गुनै भए हैं। "द्वारका के नाथ !" जब बोली तब साथ हुते द्वारका सों फेरि पाए, भक्तवाणी नए हैं ।। गएं दुर्वासा ऋषि वन में पठाए नीच धर्म-पुत्र बोले विनय भावै पन लए हैं। भोजन निवारि त्रिया थाइ कही शोच पस्यो, चाहै तनु त्यागो कह्यो "कृष्ण कहूँ गए हैं ?" ॥७१ ॥ (५५८) वात्तिक तिलक। परमसती श्रीद्रौपदीजी की महिमा वर्णन करने की सामर्थ्य किस प्रवीण (पड) को है ? भाप श्रीयादवेन्द्र भगवान को ब्रह्मसच्चिदानन्द