पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३१ H +NHRNP M HTHHAMROPM OHAMARTHMMMMARIMINS भक्तिसुधास्वाद तिलक । जानके देवरभाव से उनमें अमल विशुद्ध भक्ति रखती थीं और श्रीहरि भी आपको अपनी भावज जानते थे। चौपाई। "तिन सम पुण्य पुंज जग थोरे । जिनहिं राम जानत करि “मोरे। को रघुवीर सरिस संसारा । शील सनेह निवाहनिहारा ॥" श्रीद्रौपदीजी की कथा महाभारत में विस्तार के साथ वर्णित है जब श्रीयुधिष्ठिरजी बरबस जुवा खेलके छली दुर्योधन के हाथ श्रीद्रौपदी सतीजी को हारगए, और कलिरूप दुर्योधन की प्रामा से दुष्ट दुःशासन भरी सभा में आपको नग्न करने के निमित्त वन खींचने लगा, (केवल एक सारीमात्र आप उस समय पहिरे हुए थीं) तब उस कठिन काल में, आपने अपने देवर श्रीकृष्ण भगवान भक्तवत्सल प्रणतहित को "द्वारकानाथ।” नाम लेके स्मरण किया ॥ करुणासिन्धु महाराज यद्यपि साथ ही में विद्यमान थे, तथापि भक्तवचन चरितार्थ करने के लिये उसी क्षण द्वारका से हो पाये ॥ ___ भक्तरक्षक भगवान उस चीर (सारी) को अपनी कृपा से बढ़ाने लगे वह वस्त्र इतना बढ़ता जाता था कि दुशासन, जिसको दस सहस्र हाथियों का वन था, खींचते खींचते हार गया, परन्तु आपके एक नख के कोर का भी वस्त्र मर्यादा से नहीं सरका, वरंच श्राप सारी से हरि कृपा से ज्यों की त्यों सम्पूर्णतः ढंकी हुई खड़ी रहीं। दुष्टों के मुख काले हो गये! और सजनों के मुख से “भक्ति भक्त भगवन्त की जय” ध्वनि गूंज उठी, आपके चारो ओर वस्त्र का ढेर हो गया। [क० ]दुर्जन दुशासन दुकूल गयो “दीनबन्ध ।"दीन के द्रुपद- दुलारी यों पुकारी है । आपनो सवल लांडि ठाढ़े पति पारथ से भीम महा भीम ग्रीवा नीचे करि डारी है ॥ अम्बर लौ अम्बर पहाड़ कीन्हों, शेष कवि, भीषम, करण, द्रोण, सभी यों विचारी है। नारी मध्य सारी है, कि सारी मध्य नारी है, कि सारी ही की नारी है, कि नारी ही की सारी है?" दो० “कहा कर बैरी प्रबल, जो सहाय रघुवीर। दशहजार गजवल घट्यो, घट्यो न-दशगज चीर ।।" - --- -- --