पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१६५

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१४६ antarvtituden.. . MrunMunaadamarapurna श्रीभक्तमाल सटीक. की मधुवन सँग श्याम बिहरिवो, हरियो चीर अबला को॥ की मुरली की तान मनोहर प्रान हरो नहिं थाको। की रस रास बास में बसिवो हसिबो हेरि हहा को। हौं तो गई गुजरी उनहीं थे बांकी चितवीन जाको। इनते कछू और नहिं चाहों पावों "जीत" पिया को॥२॥ कबसे पियारे तिहारे दरस को, तरसत हैं मोरे नैन-गम । जोहत बाट कपाट सो लागी पाठो पहर दिन स्न-राम ॥ ऐसी सुरतिया हारी बसी है, पलको न लागन दैन-राम । जानों न ठांव कहां तुम छाये, प्राये नहीं सुधि लैन-राम ॥ पतियां की बतियांको कौनचलावे, नेकहु सँदेसवोसरन-राम । कासों कहूँ कोऊ सुनत न मोग, विछुरन की तोरी चैन-राम ॥ जो कोउ सुनत करेजवा है थामत, विसरावत सुख चैन-राम । श्रावो एधाबो देखाओछटायपि,नैनानोकीले व पैन-म॥ जो नहिं श्रावो पठावो खवरिया, ऐसी निठुरता पैन-राम । अन्तर की गति जाननहारो, तुम विन कोऊ तो है नाम । जो मन भावे करो सोईप्रीतम, जीत कबहुँ विसरेन-राम ॥३॥ माधो । कहिन जाति गति ब्रज की &c &c ॥४॥ कहि न जात ब्रज की कछु बतियाँ। देखत ही मो को उठिधाई ग्वाल गोपिका जतियां ॥ दिन की और दसा गोसाई हां की और रतियां । नहिं प्रतीत कोऊ उर धानत रहत वैसिये पतियां ॥ काह कहूँ कहि जात न मोपे भरिधावत हैं छतियां। जीत प्रापही जाय तो देखो निवहत है केहि भतियां ॥५॥ ( सर्वजीतलाल ) सर्वया । सुत दागो गेह की नेह सबै तजि जाहि विरागी निरन्तर ध्यावे । यम नेम घोर धारना आसन आदि करें नित योगी समाधि लगा ॥ जेहि ज्ञान औध्यानतेजाने कोऊ यौअनादि अनन्त अखण्ड बताई। ताहि अहीर की छोहरियां, छछिया भर छाँछ पैनाच नवा ॥ ६॥