पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१६६

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१४७ mutnA m m H I- H -40-1-tmener angar-HHAHIMIRMIRPAPAMute भक्तिसुंधास्वाद तिलक । श्लो० । “यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेषु भीताः शनः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ॥ तेनाटवीमटासे तद्यथते न किस्वित् कूर्पादिमिर्धमति धीभवदायुषं नः॥" (जो दशमस्कन्ध का प्राण कहा जाता है,) सो कैसे अनूठे चित्त से निकला है ॥ गोपियों के प्रेम सा प्रेम, न तो होनेवाला, न है, और न हुआ, हाँ, श्रीजनकनगर की युवतियों की प्रीति और श्रीरघुवीरचरणानुरक्ति का क्या कहना। चौपाई। कहि न सकहिं सत शारद शेसू । बेद विरंचि महेश गनेसू ।। सो मैं कहउँ कवनि विधि वरनी । भूमि नागसिर धरइ कि धरनी॥ (८४) छप्पय । (७५९). अंघी अम्बुज पांशु को जनम जनम हौं जाचिहौं । प्राचीन बहि, सत्यव्रत, रहगण, सगरं,भगीरथ। बाल्मीकि मिथिलेश,गए जे जे गोबिन्द पथ ॥ रुक्माङ्गदै, हरिचन्दै भरते, धीचिं, उदारा। सुरथे, सुधन्वा, शिविर, सुमति अतिबलि-की-दारों॥ नीले, मोरध्वज, ताम्रध्वज, अल- रक, की कीरति राचिहौं । अंघी अम्बुज पांशु को, जनम जनम हौं जाचिहौं ॥ ११॥ (२०३) वात्तिक तिलक । इन भक्तों के चरणकमल की धूरि (पांशु) को, मैं जन्म जन्म याचूँगा इन्हीं भक्तों की रंगीली कीर्तियों से मैं रंग जाऊँगा। (१) श्रीप्राचीनवीजी (४) श्रीसगरजी (२) श्रीसत्यवतजी (५) श्रीभगीरथजी (३) श्रीरहगणजी (६) महर्षि श्रीवाल्मीकिजी