पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१६९

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श्रीभक्तमाल सटीक । "बाल्मीकि" नाम रक्खा । व्याध को राम कृपा तथा नाम प्रताप से शुद्ध सिद्ध मुनीन्द्र पाया। सत्सङ्ग की जय ॥ ___ "जहां बाल्मीकि भए व्याध तें मुनीन्द्र साधु 'मरा मरा' 'जपि' सुनि सिष ऋषि सात की। चौपाई। “उलटा नाम जपत जग जाना। बालमीकि भए ब्रह्म समाना॥" श्रीसीताराम मन्त्रराज का उपदेश करके, श्रीसप्तर्षि चले गए। श्रीरामनाम का माहात्म्य कौन किस प्रकार से कहे ? श्रीनारद भगवान तथा जगत्पिता श्रीब्रह्माजी ने कृपा करके महर्षि आदिकवि महाराज को श्रीरामगुण तथा रामचरित से परिचित किया। महर्षि ने शतकोटि रामायण कीर्तन किया। “चरितं रघुनाथस्य शतकोटि- अविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ।। कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् । श्रारुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकि कोकिलम्" (कवित्त) विधिजू सुजस बीज बोये विश्ववाग बीच, पारिवर दै बढ़ाए मोश्चफल काम हैं । सगुणावतार ब्रह्मयश 'रसराम थंभ, काण्ड सप्तकाण्ड, सर्ग पत्र अभिराम हैं । त्रेता ऋतुराज, रामअयन रसाल तरु, कविता सुसाखा पै बिराजै बसु जाम हैं । कूजत मधुर मधुराखर श्रीराम राम बन्दौं बालमीकि कवि कोकिल ललाम हैं ।। चौपाई। "राम लषन सिय प्रीति सुहाई। बचन अगोचर किमि कहि जाई । देखत बन सर सैल सुहाए । बालमीकि आश्रम प्रभु आए ।" दो० "सुचि सुन्दर आश्रम निरखि, हरषे राजिवनैन । सुनि रघुबर श्रागमन मुनि, आगे आयउ लैन ॥" नौपाई। "मुनि कहँ राम दण्डवत कीन्हा । आसिरबाद विप्रवर दीन्हा॥ देखि राम छवि नैन जुड़ाने । करि सनमान श्राश्रमहिं भाने ॥ मुनिवर अतिथि प्रान प्रिय पाए। कंदमूलफल मधुर मँगाए ॥ सिय सौमित्रि रामफल खाए। तब मुनि श्रासन दिये सुहाए ।