पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१७०

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+ Arore +-+- ++- -Co- भक्तिसुधास्वाद तिलक। बालमीकि मन आनँद भारी । मंगल मूरति नैन निहारी ॥" सो. "राम स्वरूप तुम्हार, वचन अगोचर बुद्धि पर। अविगत अकथ अपार, 'नेति नेति नित निगम कह ॥" “श्रीवाल्मीकीय रामायण" बड़ा प्रामाणिक ग्रन्य है। (१) श्रीवाल्मीकीय रामायण (२) श्रीभागवत (३) पराशरीय- श्रीविष्णुपुराण (४) मनुस्मृति और (५) महाभारत, ये पांचों बड़े ही प्रामाणिक माने जाते हैं ॥अङ्रेजी, फारसी आदि में भी इनके अनुवाद हैं॥ (६२) दूसरे श्रीवाल्मीकिजी। (६) टीका । कवित्त ! (८५७) । हुतो वाल्मीकि एक सुपंच सुनाम, ताको श्याम लै प्रगट कियो, भारथ में गाइये । पांडवन मध्य मुख्य धर्मपुत्र राजा, पाप कीनो यज्ञ भारी ऋषि आए, भूमि छाइये ॥ ताको अनुभाव शुभ शंख सो प्रभाव कहै, जो पे नहीं बाजै तो अपूरनता आइये । सोई बात भई वड वाज्यो नाहि, शोच पास्वां, पूप्रभु पास “याकी न्यूनता बताइये ।। ७५ ॥ (५५४) वातिक तिलक । __अब दूसरे वाल्मीकिजी की कथा कहते हैं । एक सुपच गुप्त भगवद्भक्त "बाल्मीकि" नाम के थे । उनको श्रीश्यामसुन्दरजी ने प्रगट किया, सो कथा "महाभारत" ग्रन्थ में गाई हुई है। __पांचो पाण्डवों के मध्य में ज्येष्ठ धर्मपुत्र श्रीयुधिष्ठिरजी राजा थे। आपने इन्द्रप्रस्थ में एक बड़ा भारी यज्ञ किया, जिसमें सम्पूर्ण ऋषिवर्ग श्राए, जिनसे समस्त यज्ञभूमि भर गई। उस यज्ञ के पूर्ण होने का अनुभाव प्रभाव यह था कि एक शंख रक्खा गया, कि जब वह आपसेभाप बज उठे तव यज्ञ को सम्पूर्ण जानें । और यदि शंख स्वतःन बजे, तो जानिये कि यज्ञ पूर्ण न हुआ, सो वैसा ही हुआ अर्थात् शंख नहीं वजा ॥ तव युधिष्ठिरादिक को बड़ा ही सोच हुआ, और श्रीकृष्णचन्द्रजी ... श्रीभगवद्गीता तो महाभारत के अन्तर्गत है ।।. . . .. - "सुपच" (श्वपञ्च जो श्वान का मांस भी रांध के खा जावे, भंगी) ॥ । --- -