पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१८०

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। १६१ +++NeemkanRIM4MAMAnnuarM MINARMATHMAmmHBIRArtermanevaansra-1100-4 असमंजस के पुत्र अंशुमान ने श्रीकपिल महाराज की स्तुति की । आपने प्रसन्न हो घोड़ा दे दिया, तथा श्रीगंगाजी को लाने की आज्ञा दी। घोड़ा लाकर अंशुमान ने अपने दादा (पितामह) राजा सगर को दिया। श्रीसगरजी ने यज्ञ पूर्ण कर, अंशुमान को राज्य दे, आप वन को जा भगवद्भजन कर परांगति पाई ॥ (६६) महाराज श्रीभगीरथजी। राजा अंशुमान ने बहुत दिन राज्य कर, अपने पुत्र दिलीप को राज्य दे, तप किया तथा दिलीप राजाने श्रीगंगाजी ही के लिए तप किया। राजा भगीरथ ने विवाह करने के पूर्व ही तप करना भारम्भ किया उनके तप से श्रीरामकृपा से श्रीगंगाजी पाई. इसीलिये श्रीगंगाजी भागीरथी के नाम से भी पुकारी जाती हैं। श्रीभगीरथजी की भक्ति को धन्यवाद जिनके द्वारा श्रीगंगाजी प्रगट हुई हैं । “जय जय जय सुरसरि ? तवरेनू । सकल सुखद सेवक सुरधेनू ॥ जय भगीरथनन्दिनी, मुनिचय चकोरे- चन्दिनी, नरनाग विबुधवन्दिनी, जय जह, बालिका । विष्णु पद सरोजजासि, ईश सीस पर विभासि, त्रिपथगासि पुण्यराशि, पाप छालिका । बिमल विपुल बहसि बारि, शीतल त्रय तापहारि, भवरवर विभंगतर तरंगमालिका । पुरजन पूजोपहार शोभित शशिधवलधार, भंजनि भवभार भक्तकल्पथालिका । निज तटवासी विहंग जलथलचर पशु पतंग कीट जटिल तापस, सब सरिस पालिका। “अवधपुरीसरयुतीर सुमिरत रघुवंशवीर विचरत मति” देहि मोहमहिष कालिका !॥" (७०)श्रीरुक्माङ्गदजी। ( ९४ ) टीका । कवित्त । (७४९) । रुक्मांगद बाग शुभ गन्ध फल पागि रह्यो, करि अनुराग देववधू लेन आवहीं । रहि गई एक कांटा चुभ्यो पग बैंगन को सुनि नृप माली पास आए सुख पावहीं ॥ कहौ "को उपाय स्वर्गलोक को. पठाइ दीजै” “करै 'एकादशी' जलधेरै कर जावहीं" । "व्रत को तो