पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१८२

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mantrARImmentstandmari t manari-M A artmentarMamaanimantritis भक्तिसुधास्वाद तिलक। वात्तिक तिलक । यह सुन, राजा ने अपने नगर में डोड़ी फिरवा दी कि “कल जो कोई दिनरात भूखा रह गया हो सो राजा के समीप चले !! उस पर महाराज अति प्रसन्न होंगे" ऐसा ढिंढोरा सुनके एक बनिये की कौड़ी व्हलनी सामने आई, जिसको किसी अपराध से बनिये ने बहुत पीटा और भोजन भी नहीं दिया था, इसी हेतु से वह भूखी और रात भर रोती जागी हुई थी। राजा ने उसी लौड़ी ( टहलनी) से संकल्प कराके उस अज्ञात व्रत का फल अप्सरा को दिलादिया, इतने ही मात्र के प्रभाव से उस अप्सरा को दिव्य गति प्राप्त हो गई, तथा उड़के वह निज लोक को चली भी गई। इस प्रकार एकादशी व्रत का आश्चर्यजनक अमोघ माहाम्य देखके, राजा ने अपने पुर और देश भर में भावा दे दी कि “एकादशी को यदि कोई अन्न खायगा, तो उसको बांध के प्राणान्त दंड दिया जायगा।" यो सब लोग राजा की आज्ञा से व्रत और जागरन तथा भगवत्राम कीर्तन में तत्पर हो गए। इसी व्रत के प्रभाव से राजा के पुर भर में भावभक्ति का अति प्रचार हुश्रा, और नवीन अनोखी बात यह हुई कि अन्त में सब के सब मुक्तरूप होकर श्रीभगवद्धाम को प्राप्त हो गए।

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(७१) राजा रुक्माङ्गद की सुता। (९६) टीका । कवित्त । (७४७) एकादशी व्रत की सचाई लै दिखाई राजा, सुता की निकाई सुनौ नीके चित लाइकै । पिताघर बायो पति, भूख ने सतायो अति, मांगे तिया पास, नहीं दियो यह भाइकै ॥ "भाजु हरिवासर सो ता सर न पूले कोऊ, डर कहा मीच को" यों मानी सुख पाइकै । तजे उन पान, पाए बेगि भगवान, वधू हिये सरसान भई, कहाँ पन गाइके ॥ ८५॥ (५४४)