पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१८३

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श्रीभक्तमाल सटीक । and -LMANNARAmmmmun i tuateu4-1-mantra. ...maunia- वात्तिक तिलक । श्रीएकादशीव्रत का प्रभाव और सचाई तो राजा ने प्रगट की, अब राजा की लड़की की महिमा वा प्रशंसा लिखते हैं सो भली भांति से चित्त देके सुनिये। ___ उसका पति रुक्माङ्गदजी के घर (अपनी ससुराल) में आया, उसी दिन एकादशी थी। राजपुत्र अतिसुकुमार तो था ही, उसको तुधा ने अत्यन्त बाधा किया, जब उसको किसी ने भोजन न दिया तब उसने अपनी स्त्री से यह कहा कि खाने बिना मेरे प्राण छूट जाएँगे, परन्तु तब भी उसने एकादशी के भाव से भोजन नहीं दिया, और बोली कि "अाज हरिबासर है कि जिसकी समानता को कोई और व्रत नहीं पहुँच सकता। आज की मृत्यु का क्याभय है कि जिसमें अभय परमपद को प्राप्ति है" । सुखपूर्वक ऐसी दृढ़ता को वह गहे रही ॥ उसने भूख से प्राण छोड़ ही तो दिये। उसी समय वैकुण्ठ से विमान आया और सबके देखते दिव्य रूप हो वह उस पर चढ़ भगवद्धाम को चला गया। __यह देखके उनकी स्त्री का हृदय भक्ति से अत्यन्त सरस हुआ। प्रभु ने प्रसन्न हो पार्षदों को विमान समेत भेजकर आपको (उनकी प्रिया को) भी कृपा करके अपने धाम में बुला लिया ॥ इस भाँति उनके एकादशीव्रत का पन हमने मान किया ॥ टीका (समुदाय)। (९७) टीका । कवित्त । (७४६) सुनौ "हरिचंद" कथा, व्यथा विन द्रव्य दियो, तथा नहीं राखी बेचि सुत तिया तन है । "सुस्थ" "सुधन्वा" जूसों दोष के करत मरे, "शंख श्री "लिखित” विष भयो मैलो मन है । इन्द्र औं अगिन गये शिवि परीक्षा लेन, काटि दियो मांस रीझि सांचो जान्यो पन है । “भरत" "दधीच" आदि भागवत बीच गाए, सबनि सुहाए जिन दियो तन धन है ॥ ८६ ॥ (५४३) बार्तिक तिलक । महाराज श्रीहरिश्चन्द्रजी की कथा सुनिये । दुखरहित मन से