पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१९

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श्रीभक्तमाल सटीक। तिलक । निम्नलिखित सुशृङ्गार श्रीभक्ति महारानीजी के जानिये । जो इन्हें निरखता रहता है उसको श्रीप्रिया प्रियतम (श्रीराम प्रिया सीताजी तथा श्रीमजनकनन्दिनी पाणवल्लभ रामचन्द्रजी) कृपा करके श्रा मिलते हैं। ऐसा सव वेद पुराण शास्त्रादि में गाया हुआ है-- १.उबटन कथा कासुनना। भगवत्लीलातथा भक्तों के यश का श्रवण । चौपाई। "रामचरित जे सुनत अघाहीं । रस विशेष जाना तिन नाहीं॥ जिनके श्रवण समुद्र समाना। कथा तुम्हारि सुभग सरिनाना ।। भरहिं निरंतर होहिं न पूरे । तिनके हृदय सदन शुभ रे॥" २. मैल-अभिमान । सब प्रकार के अर्थात् भीतर के बाहर के अहंकार । चौपाई। "उर अंकुरेउ गर्व तरु भारी । बेगि सो मैं डारिहीं उपारी ॥ अहंकार अति दुखद डमरा" इत्यादि। दो० "विद्या रूप सुजाति, धन, इत्यादिक अभिमान। जव लगि उर, तब लगि कभू, मिलें न श्रीभगवान ॥" ३. फुलेल श्रद्धा शास्त्र और भाचार्य के वचनों इत्यादिक में प्रीति प्रतीति सहित स्पृहा। श्लो. "भवानीशङ्करो वन्दे 'श्रद्धाविश्वास' रूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम् ॥" “सात्त्विक्याध्यात्मिकी श्रद्धा, कर्मश्रद्धा तु राजसी। तामस्यधम्म या श्रद्धा, मत्सेवायान्तुनिर्गुणा ॥” (भागवते) चौपाई। "रघुपति भक्ति सजीवनमूरी । अनूपान श्रद्धा' शुचि पूरी ॥" ४. सुनीर-मनन । मन में उसको चितवन करना कि जो कुछ श्रवण किया है वा जो कुछ पढ़ा है, श्रीहरिकृपासे ऐसे सविवेक चिन्तन मनन- रूपी निर्मल सुगन्धित पवित्र अनुकूल सुन्दर जल से स्नान, [मान- हारी दीनसुखद अभिमानभंजन गर्वपहारी प्रणतहितकारी भगवत्चरित्रों