पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१९२

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HAMASEAN H umaniteANIMATIHARONLIMHRIME भक्तिसुधास्वाद तिलक । जावो और मैं वृद्ध ब्राह्मण होके दोनों चलें ।" ऐसा ही किया ॥ . राजा मोरध्वज के द्वार पर पहुँचके प्रतिहार से कहा कि “राजा कहाँ हैं ? शीघ्र जाके जनावो कि दो विप्र आए हैं किसी ने जाले राजा से जनाया। मोरध्वजजी ने उत्तर दिया कि “प्रभु की पूजा कर रहा हूँ, जाके कहो कि थोड़ा ठहरिये कृपाकर बैठ जाइये, अभी मैं आके आपके चरणों पर पड़ता हूँ।" आकर प्रतिहार ने ऐसा ही कहा, सो सुनते ही, ब्राह्मण देवता के आग सी लग गई। (१००) टीका ( कवित्त ।(७४३) चले अनखाय पाँय गहिअटकाय जाय नृप को सुनाय ततकाल दौरे पाए हैं। "बड़ी कृपा करी अाज फरी चाह वेलि मेरी, निपट नवेल फल पाँय याते पाये हैं ॥ दीजै आज्ञा मोहिं सोई कीजे, सुख लीजै यही, पीजै वाणी रस, मेरे नैन लै सिराएं हैं। सुनि क्रोध गयो, मोद भयो, सो परिक्षा हिये लिये चित चाव ऐसे वचन सुनाए हैं ॥८६॥ (५४०) .. वात्तिक तिलक। . ब्राह्मण देवता रिसाय के चल दिये। तब राजा के सेवकों ने उनके चरणों को पकड़ के बहुत विनय कर उन्हें रोक रक्खा, और सव वृत्तान्त महाराज से जा सुनाया ॥ सुनते ही उसी क्षण राजा दौड़े श्राए और प्रणाम करके हाथ जोड़ प्रार्थना करने लगे कि “प्रभो! आपने बड़ी कृपा की, आज मेरी चाहरूपी बेलि फलयुक्त हुई जिससे अत्यन्त. नवीन फलरूपी आपके पाँय (चरण) मैंने पाए। अब जिस हेतु आपने कृपा की हो सो मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं वही करके सुख लू, और आपके अमृतरसमय वचन श्रवणपुट से पान करूँ, आपके दर्शनों से मेरी आँखें भलीभाँति शीतल हुई ।" __भक्तराजजी के ऐसे वचन सुन विप्रदेव ने क्रोध को त्याग कर • "अनखाय"=रिसाय, अनखसे ! २ किसी प्रति मे पाय नहीं है, 'पायो' पाठ है। ३"सिराए"-ठ, शीतल, जुड़ाने, तृप्त् ॥ .