पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१९६

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१७७ Hiran +Pawan भक्तिसुधास्वाद तिलक । श्लो० कथञ्चिदुपकारेण कृतेनैकेन तुष्यति।। नस्मरत्यपकाराणां शतमप्यात्मवत्तया ॥ १॥ "बहुत अच्छा, श्राप एक वरदान मुझे दीजिये” प्रभु ने कहा कि "दिया, शीघ्र कहो क्या माँगते हो ?" तब परोपकारी श्रीमोरध्वजजी ने यह वर माँग खिया कि “कलिकाल में भक्त सन्तों की परीक्षा मत लिया कीजियेगा।" श्रीमोरध्वजजी की जय ॥ (८१)श्रीअलर्कजी। (१०४) टीका । कवित्त । (७३९) अलर्क की कीरति में रांचों नित, साँचौ हिये, किये उपदेश हून छ? विष वासना । माता मन्दालसा की बड़ी यह प्रतिज्ञा सुनौ "भावै जो उदर माँझ, फिरी गर्म आस ना ॥" पति को निहोरो ताते रह्यो बोटो कोरो, ताको ले गए निकासि, मिलि काशी नृप शासना। मुद्रिका उघारि, औ निहारि दत्तात्रेयजू को, भए भवपार करी प्रभु की उपासना ॥ १३ ॥ (५३६) ___ वात्तिक तिलक । श्रीअलर्कजी की माता श्रीमन्दालसाजी की कथा पीछे लिख पाए हैं। श्रीपलकजी की कीर्ति को मैं सच्चे हृदय से नित्य ही रँगता हूँ। लोगों की विषयभोगवासना, उपदेश किये से भी नहीं छूटती परन्तु श्रीरामकृपा से अलर्कजी की सर्वथा छूट गई। सुनिये, श्रीअलर्कजी की माता श्रीमन्दालसाजी की यह बड़ी भारी दृढ़ प्रतिज्ञा थी कि “जो जीव मेरे गर्भ में आवे, उसको फिर गर्भ में नहीं जाना पड़े अर्थात् आशा तृष्णा आदि से छूटके वह मोक्षपद को प्राप्त हो जावे।" "चद्धो हि को ?” “यो विषयानुरागः” का वा यदि किसी प्रकार से कोई किचित् भी उपकार करे, तो उसी से प्रभु अतिशय सन्तुष्ट हो जाते है। फिर जो सैकड़ों उपकार भी करे, तो उस जन मे अपनपी मानके उसके दोषो का स्मरण ही नहीं करते। ऐसा प्रभु का स्वभाव है (श्रीवाल्मीकिः ) १ "रॉची"रंग जाता हूँ। २ "निहोरो" = प्रार्थना, विनय। ३ 'कोरों" - गोद का . लड़का, कोछे का बालक !