पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१९७

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१७८ HEADMI N MEANINMarti Indenaduindiamag r ane ........................श्रीभक्तमाल सटीक ।। विमुक्तिर ?” "विषये विरक्तिः ।” सो अपनी प्रतिज्ञा उनने पूर्ण की ही तो सही ॥ कई पुत्रों को उपदेश करके आपने विरक्त जीवन्मुक्त कर दिया । जब सबसे छोटा पुत्र श्रीमन्दालसाजी के हुमा, तो उनके पति ने आपसे बहुत विनय निहोरा किया कि “इस पुत्र को भी उपदेश देकर विरागी मत बना दो, इसको राज्य तथा वंश के निमित्त गृहस्थ रहने दो॥" यों पति के विनयवश उसको वन में न भेजा। परन्तु पतिसमेत आप वनको चलीं और उसी समय एक श्लोक लिख मुद्रिका में रखके अलकेजी को दे दिया कि तुम्हें जब कोई कष्ट पड़े तो इसको खोलके देखना।। श्लोक संगः सर्वात्मना त्याज्यः यदि त्यक्तं न शक्यते। सद्भिव प्रकर्तव्यः सत्सङ्गो भवभञ्जनः॥३॥ वन में जा आपने अपने ज्येष्ठ पुत्रों से कहा कि “जिसमें मेरी प्रतिज्ञा भंग न हो इसलिये जाके किसी भाँति अपने भाई अलर्क को भी विरक्त करके प्रभु के चरणों में लगा दो।" आज्ञा मान,आके, उन्होंने प्रथम अलर्क को बहुत उपदेश किया, परन्तु उपदेश से विषयवासना नहीं छूटी। तब अपने मा काशिराज को सेनासहित लाके पुर को घेर लिया। इस आपदा के समय अलर्कजी ने मुद्रिका को खोलके देखा तो लिखा पाया कि “संसार के संग को सर्वथा त्याग करना चाहिये और जो त्याग न सके तो समीचीन महात्माओं का संग करे क्योंकि सत्सङ्ग भवरोग- नाशक है" यह विचार श्रीअलर्कजी राज्य को परित्याग कर रात्रि में निकलके श्रीदत्तात्रेयजी से मिले ॥ ___ एवं उनके उपदेश से भगवत् की उपासना करके मोक्षपद को प्राप्त हुए। श्रीअलर्कजी ने अपनी आँखें निकाल के एक वेदपाठी ब्राह्मण को उनके माँगने पर दे दी थीं ॥ अलर्कजी एक समय कालंजर के समीप वन में विचरने लगे, तो एक दिव्य सर देखा, जिसके तट में एक मृतक मनुष्य पड़ा था,