पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१९८

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । +++PARIHAR Mirmit+ m a +rtantumaa women... १७९ इतने में दो पिशाचों में झगड़ा होने लगा, एक कहता था कि मैं खाऊँगा, दूसरा कहता था कि मैं ॥ ___ अलर्कजी ने पूछा क्यों विवाद करते हो? तब दोनों पिशाच बोले कि वस्तु एक ही है और हम दोनों भूखे हैं, उदर कैसे भरे ? श्री. अलर्कजी ने कहा कि "एक शव को खावे, और दुसरा मेरी देह को।" यह सुन प्रसन्न हो दोनों ने “वरं बहि" कहा ॥ ___ श्रीअलर्कजी ने पूछा कि तुम दोनों कौने हो ? तब उसी क्षण, एक श्रीविष्णु, दूसरे शिवजी होके बोले कि "हम विष्णु, शिव हैं" इस पर, स्तुति कर उनसे यह वर मांगा कि “सकल विश्व सुखी रहे, किसी वस्तु का कोई दुःखी न रहे,” यही वर दीजिये। इस पर दोनों ने आज्ञा की कि “यह नहीं हो सकता कर्म सबके पृथक् २ हैं, परन्तु हमारी कृपा से अब यह सामर्थ्य तुझमें रहेगी कि जिस वाञ्छा से तेरे पास कोई आवेगा तू पूरी कर सकेगा, अन्त में तुझे मोक्ष प्राप्त होगा।" इस प्रकार श्रीविष्णुजी और शिवजी, अलर्कजी की परीक्षा ले, वर दे, निज निज स्थल को चले गए। ___ (१०५) छप्पय (७३८) तिन चरण धूरि मो भूरि सिर, जेजे हरिमायातरे॥ रिभु, इक्ष्वाकरु,* ऐल, गांधि, रघु, रै', गैं, शुचि शत- धन्वा, । अमूरति, अरु रन्ति, उतंग, भूरि, देवलं, बैवस्वत मन्वा ॥ नहु, जाति, दिलीप, पूरूँ, यहूँ, गुह, मान्धाता। पिप्पल, निर्मि , भरद्वाज, दक्ष, सभंग, सँघाता ॥ संजय, समीक, उत्तानपार्दै, याज्ञवल्क्य, जस जग भरे। तिन चरण धूरि मो भूरिसिर, जेजे हरि- माया तरे। (२०२) 2 "ऐल"=इला के पुत्र पुरूरवा 11 "सर्भग सँघाता" =श्रीसभंग प्रभृति दण्डकवन के मुनिवृन्द ॥