पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/१९९

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...M urarandarentNATHMANOHANE श्रीभक्तमाल सटीक । वात्तिक तिलक । उन श्रीभगवद्भक्तों के चरणों की धूर बहुत सी बहुमान्यपूर्वक मेरे शीश पर है कि जो जो भगवान की माया के पार हो गए हैं, और उन पवित्रात्माओं के सुयश सम्पूर्ण जगत् में भर रहे हैं । १ श्रीऋभुजी १६ श्रीययातिजी २ श्रीदवाकुजी १७ श्रीदिलीपजी ३ श्रीऐल (पुरूवा)जी १८ श्रीपुरुजी ४ श्रीगाधिजी १६ श्रीयदुजी ५ श्रीरघुजी महाराज २० श्रीगुह (निषाद)जी ६ श्रीरयजी २१ श्रीमान्धातानी इक्ष्वाकुवंशी ७ श्रीगयजी २२ श्रीपिप्पलायनजी ८ श्रीशतधन्वाजी २३ श्रीनिमिनी श्रीभमूरतजी २४ श्रीभरद्वाजजी १० श्रीरन्तिदेवजी २५ श्रीदक्षजी ११ श्रीउत्तंकजी २६ श्रीशरभंगजी १२ श्रीभूरिषणाजी २७ श्रीसंजयजी १३ श्रीदेवलजी २८ श्रीसमीकजी १४ श्रीवैवस्वतमनुजी २६ श्रीउत्तानपादजी १५ श्रीनहुषजी ३० श्रीयाज्ञवल्क्यजी (८२) श्रीरन्तिदेवजी - (१०६) टीका | कवित्त । (७३७) अहो । रंतिदेव नृप सन्त दुसंकेत बंस अति ही प्रशंस सो १ (श्लोक) इक्ष्वाकुरलमुचुकुन्दविदेहगाधिरध्वम्बरीषसगरा गयनाहुषाद्या । मान्धात्रलर्क- शतधन्वनुरन्तिदेवा देवव्रतो बलिरमूर्त रयो दिलीप ॥१॥ सौभर्युतकशिविदेवलपिप्पलादसार- स्वतोद्धवपराशरभूरिपेणा 1 येऽन्ये विभीषणहनुमदुपेन्द्रदत्तपार्थाष्टिषेण विदुरश्रुतिदेववर्या ॥२॥ ते वै विदन्त्यतितरन्ति च देवमाया स्त्रीशूद्रहणशवरा अपि पापजीवा । यद्यद्भुतक्रम- परायणशीलशिक्षास्तियंग्जना अपि किमु श्रुतिधारणा ये॥३॥ (श्रीमद्भागवते) २ "दुसकन्त" नाम दुष्यन्त जिनकी स्त्री शकुन्तला-सशक प्रसिद्ध है।