पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीभक्तमाल अटीक। चौपाई। शाखामृग के बड़ि मनुसाई । शाखाते शाखा पर जाई॥" "मांगों भील त्याग निज धरम् ॥" चौपाई। की तुम सम दीन अनुरागी। प्रायड मोहिं करन बड़भागी॥" "बरपहिं जलद भूमि नियराये । यथा नवहिं बुध विद्या पाये।" दो० "फलभर नम्र विटप सव, रहे 'भूमि नियराई । पर उपकारी पुरुष जिमि, नवहिं सुसम्पति पाई॥ सत्य वचन, अरु दीनता पर त्रिय मात समान । एड पर हरि जो ना मिले, तुलसीदास जमान॥" (स.) "हाँ तो सदा खर को असवार तिहारोइ नाम गयन्द चढ़ायो॥" (पद) “यह दरवार दीन को श्रादर, रीति सदा चलि आई।" "सकल शोकदायक अभिमाना। संसृत मूल शूलमद नाना॥ 'दम्भ कपट मद मान नहरमा । अहंकार अति दुखद डमरुया ॥" दो. "दीन रहा नहिं दीन भा, नाहि दीन पद भास । दीनबन्धु केहि विधि मिलें, बिन दीनता निवास ।।" ५. सोंधो (अस्गजा, चन्दन, सुगन्ध )="पन" । श्रीगिरिराज- किशोरीकपासे नियम, नेम, व्रत, दृढ़ता, अनन्यता॥ "समभक्ति जल मम मन मोना । किमि बिलगाह मुनीश प्रवीना ॥ तजौं न नारद कर उपदेशू । आपु कह शतवार महेश ॥" दो० "चातकि को, अरु मीनको, भक्तनको 'पन' एक। सुयश नेम विख्यात जग,धनि धनि धन्य सो टेक॥". तथा एकादशी व्रत, ऊर्ध्वपुण्ड्र, और वैष्णवों के चरणरज कोसीसपर रखने का नेम और पन॥ ८. श्राभरण (अनेक भूषण )="हरिनाम। श्रीशारदापा और श्रीनारददया से "श्रीसीताराम श्रीराधाकृष्ण" नाम का कीर्चन, अखण्ड तैलधारावत् रटना जपना उसमें रमना, रागस्वर से उसका मधुर कीर्तन सप्रेम, "चारु हरिनाम लेत अश्रुअन झरी है।" चौपाई।