पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२२५

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RAMPARAMITAL RINGHumanprahaareenamenerate २०६ श्रीभक्तमाल सटीक । चौपाई। "दुर्गम काज जगत में जेते । सुगम अनुग्रह कपि के तेते ॥ कवनसो काज कठिन जगमाहीं। जोनहिं तात होय तुम पाहीं॥ सीयदुलारे रामपियारे । सन्त भक्त के कपि रखवारे॥ नहिं कोउ हनुमतसमवड़भागी। सीताराम चरण अनुरागी॥ मंगल मूरति मारुतनन्दन । सकल अमंगलमूलनिकन्दन॥" सो. “सेइय श्रीहनुमान, भुक्ति-मुक्ति हरिभक्ति-प्रद । जनरक्षक, भगवान, वीर, धीर, करुणायतन ॥" (११६) (१२०) श्रीअर्जुनजी, श्रीप्टथुजी। "श्रीहरिवल्लभों" में भी, श्रीअर्जुनजी की कथा होचुकी है, और यहाँ (इस छप्पय में) आपको श्रीग्रन्थकारस्वामी ने "नवधाभक्ति" (सख्यरस) के प्रसंग में लिखा है। श्लो. “सर्वगुह्यतमं भूयः शृणु मे परमं वचः। इष्टोऽसि मे हदमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ॥ &C&C प्रियोसि मे ॥" (२) भगवत् के अवतारों में तथा "जिनके हरि नित उर वसे' तिन भाग्यभाजनों में भी महाराज श्रीपृथुजी की चर्चा हो चुकी है। किसी२ महात्मा ने भापको "श्रवण" निष्ठा में लिखा है, और यहाँ आपको श्रीनामास्वामीजी प्रमुख ने "पूजन" निष्ठा में वर्णन किया है। (१२१)श्रीअक्रूरजी। (११५) टीका । कवित्त । (७२८) चले अकरूर मधुपुरीते, बिसूरे, नैन चली जल धारा, कब देखों छवि पूर को। सगुन मनावै, एक देखिकोई भावे, देहसुधि विसरावे, लोटे, लखि पगधर को ॥ वंदन प्रवीन, चाह निपट नवीन भो, दई शुकदेव कहि जीवन की मूर को मिले राम कृष्ण, मिले पाइ के मनोरथ को हिले दृगरूप कियो हियो चूर चूर को ॥ १०१॥ (५२८) . १"बिसूरना" रूप चिन्तवन करना ।२ 'झिले"-आगे बढे, लपके । ३ "हिले"- प्रवेश किया, हिल भए, हिताए, परके, सस्नेह मिले।