पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२३२

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-* a - A t up - timanam . . . भक्तिसुधास्वाद तिलक । खंका में सकार पर कृपा करके राक्षस-प्रेरित अख-शस्त्रों से रक्षा की है, और श्रीआदित्यहृदय पढ़ाया है कि जिसकी महिमा प्रसिद्ध ही है । चौपाई। "दीन दयाल दिवाकर देवा । कर मुनिमनुज सुरासुर सेवा ॥ हिम तम करि केहरि करमाली । दहन दोष दुख दुरित रुजाली॥ कोक कोकनद लोक प्रकाशी। तेजप्रताप रूप रस राशी ।। सारथि पंगु दिव्य रथ गामी । विधि शंकर हरि मूरति स्वामी ॥ बेदपुराण प्रगट यश जागे । तुलसी राम भक्ति वर माँगे ॥" अरण्य में, प्रभु ने स्वयं आपके आश्रम में जाके आपको दर्शन दिया है । श्रीअयोध्याजी में राज्याभिषेक के अनन्तर श्रीअगस्त्यजी से प्रभु ने अनेक कथा, तथा श्रीमहावीर हनुमानजी के सुयश सुने हैं । श्रीअगस्त्यगुणग्राम वेद तथा पुराणों में विदित है। श्रीसीतारामजी की पूजा भक्ति के प्राचार्य महामुनि अगस्त्य भगवान की जय जय ॥ सबैया । "पूरण ब्रह्म बताय दियो जिन एक अखंड है व्यापक सारे। रागर द्वेष करै अब कौन सों जोई है मूल सोई सव डारे। संशय शोक मिट्यो मन को सब तत्त्व बिचारि कह्यो निरधारे। "सुन्दर" शुद्ध किये मलधोयकै है गुरु को उर ध्यान हमारे॥" (१२५) श्रीपुलस्त्यजी। श्रीपुलस्त्यजी श्रीब्रह्माजी के पुत्र हैं। गृहस्थाश्रम में रह, पुत्र उत्पा- दन कर, बेटों को विद्या पढ़ा, आपने मोक्षपद का साधन किया । (१२६) श्रीपुलहजी। __ श्रीपुलहजी श्रीपुलस्त्यजी के भाई हैं। इन्होंने भी अपने भ्राता ही के सरिस आचरण किये। (१२७) श्रीच्यवनजी। श्रीच्यवनजी वन में रह, भगवान के ध्यान समाधि में ऐसे निमग्न हो गए कि उनके शरीरभर में दीमकों ने मिट्टी का ढेरे (वलमीक) लगा दिया।