पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२३७

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२१८ part- श्रीभक्तमाल सटीक । पद। अब लौं नसानी सो अब न नसेंहीं ॥ इत्यादि। इनकी उन त्रियों को भी विराग उत्पन्न हुआ, श्रीसीतारामजी का भजन करके आपने और उन सबकी सबने परमधाम पाया ॥ (१३०) श्रीकर्दमजी श्रीकदमजी श्रीब्रह्माजी की छाया से प्रगट हुए ॥ . श्रीब्रह्माजी ने सृष्टि की आज्ञा दी, पर इनको इनके तीन वैगग्य ने गृहस्थाश्रम अंगीकार करने न दिया । और वे वन में जाकर तप करने लगे। प्रभु ने दर्शन दिया। चौपाई। "रामचरण पंकज जब देखे । तब निज जन्म सफल करि लेखे ॥" प्रभु ने आज्ञा की कि "परसों स्वायम्भूमनु तुम्हारे पास श्राकर अपनी लड़की देवहूती तुम्हें देंगे, स्वीकार कर लेना ॥" चौपाई। "ताके मैं लेहौं अवतारा । करिहौं योग ज्ञान परचारा॥" श्रीदेवहूतीजी की सेवा से प्रसन्न होकर, श्राप (श्रीकद्दमजी ने) विश्वकर्मा से एक विमान वनवाया तथा श्रीदेवहूतीजी की सेवा के अर्थ सहस्र सुन्दरियाँ भी प्रगट की । सब समेत विमान में बसके भोग विलास करते लोकों में विचरने लगे। श्रीदेवहूतीजी को अति सुख दिया । दो० "धर्मशील हरिजनन के, दिन सुख संयुत जाहिं। सदा सुखी अति मीनगण, जिमि अगाध जल माहिं ॥" दम्पति से श्रीकपिल भगवान ने अवतार लिया, और ६ (नव) लड़कियाँ भी हुई, जिनका विवाह श्रीब्रह्माजी के ६ (नव) बेटों से हुमा- १ श्रीअरुन्धतीजी से श्रीवशिष्ठ । ५ श्रीहवी, पुलस्त्यजी, जी महाराज का, ६ श्रीगति, पुलहजी, २ श्रीकला, मरीचिजी, | ७ श्रीक्रिया, ऋतुजी, ३ श्रीअनुसूया, अत्रिजी, | श्रीख्याति, भृगुजी, ४ श्रीश्रद्धा, अङ्गिराजी, ! श्रीशान्ति, अथर्वननी॥