पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२३८

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MerenMAINMMANOHAImaviM UHAMRTM ............................. माधास्वाद तिलक। ___ श्रीकदमजी अपनी धर्मपत्नी देवहूतीजी को यह आशीष देकर कि "भगवान श्रीकपिलदेव (तुम्हारे पुत्र) अपनी माता का (तुम्हारा) भवबन्धन छुड़ावेंगे", आप परमं विरक्त हो, वन में जा, भगवत्चरण- कमल के परम अनुरक्त हुए। (१३१) (१३२) श्रीअत्रिजी,श्रीअनुसूयाजी। श्रीअत्रिजी श्रीब्रह्माजी के पुत्र हैं । आपने अपनी धर्मपत्नी श्रीअनु- सूयाजी सहित महेन्द्राचल पर (श्रीचित्रकूट में ) तप किया। आप निज तपबल से श्रीसुरसरिधार मन्दाकिनीजी, पयसरनीजी को लाई ॥ श्रीअत्रिजी ने चाहा कि जगदीश मेरे पुत्र हो । हरि ने विधि हर युत कृपा करके दर्शन तथा वरदान दिया कि “बहुत अच्छा, श्रीअनु- सूयाजी के गर्भ से हम तीनों के अंशावतार होंगे" । सो वैसाही हुश्रा, अर्थात्- १ श्रीविष्णु भगवान के अंश मे "दत्तात्रेयजी," २ श्रीब्रह्माजी के अंश से "चन्द्रमा” मुनिजी, ३ और रुद्रांश से श्रीदुर्वासाजी॥ । श्रीअनुसूयाजी और श्रीअत्रिजीको अभिलाषा हुई कि श्रीसीतारामजी के दर्शन पाऊँ ॥ ___ लाल लाडले श्रीलखनजी सहिन भक्तवत्सल श्रीसीतारामजी ने थापके आश्रम पर जा दर्शन दिये । और पातिव्रतधर्म श्री "रामचरित- मानस” से सब प्रेमियों को विदित ही है ।। (१३३) श्रीगर्गजी। श्रीगर्गाचार्यजी ने बड़ा तप किया। बहुतों को विद्या "पढ़ाई। यदुवंश के पुरोहित और श्रीकृष्ण भगवान के गुरु हैं। श्रीगर्गसंहिता में श्रीकृष्ण भगवान के भति मनोहर चरित लिखे हैं। "गर्गसंहिता" विख्यात ग्रन्थ है।