पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । +नन- चौपाई। "मति कीरति गति भूति भलाई । जब जेहि यतन जहाँ जे पाई ॥ सो जानब सतसंग प्रभाऊ । लोकहु वेद न आन उपाऊ । सत्संगति मुद-मंगल मूला । सोइ फलसिधि सवसाधन फूला।" दो० “तात ! स्वर्ग अपवर्ग सुख, धरिय तुला एक अंग। तुलेन ताहि सकल मिलि, जो सुख लव सतसंग ।।" भक्ति। १२. बीरी [ पान, अधरराग]="चाह (नेह, भक्ति) चौपाई। स्वास्थ साँच जीर कह रहा । मन क्रम बचन राम पद नेहा ।। सो० “लोभिहि प्रिय जिमि दाम, कामिहि नारि पियारि जिमि । ___ हरि पद "रति निःकाम, "भक्ति” सुसंज्ञा ताहि की ।।" "भक्ति" प्रेम, अनुरक्ति, चाह, इश्क, लव, लो, लगन, भाव, भजन, आसक्ति, राग, प्रीति, अनुराग, रति ॥ [सूत्र] “सा पराऽनुरक्तिरीश्वरे [श्रीशाण्डिल्य] [सूत्र] "सा कस्मै परमप्रेमरूपा" [श्रीनारद "भक्ति = "भजना,भजन करना,प्रणय, प्रियलगना,सेवा करनी,चाहना, प्यार करना,प्रीति,प्रेम, स्नेह, अनुरक्ति, अनुराग, परम प्रेम, पराप्रीति,रति, प्रियतम बिन दुखी रहना, प्यारे विनन जीना, सकल प्यारी वस्तुओं को प्रियतम परन्योछावर करना, ककर्य प्रिय लगना, सदैव चिन्तवन, प्रियतम की प्रसन्नता में ही सुख मानना, पीपी रटना ॥ “मनुज देह सुरसाध सराहत सो सनेह सिय पीके","स्वाति सलिल रघुवंशमणि, चातक तुलसीदास चौपाई। "प्रभु व्यापक सर्वत्र समाना। "प्रेम" ते प्रगट होहिं मैं जाना॥ रामहिं केवल प्रेम पियारा । जानि लेड्ड जे जाननिहारा ।। देवि ! परन्तु भरत रघुवर की। प्रीति प्रतीति जाइ नहिं तरकी ॥” श्लो॰“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोसि मे [१५-६५]