पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४०

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Part+mutatement- भातसुधास्वाद तिलक ............ 'परमहंस' कहा और समझा और श्रीव्यासजी से लज्जा का बर्ताव किया। आपने पत्ते पत्ते से 'शुकोऽई 'शुकोऽहं' कहला दिया था। (१३६) श्रीलोमशजी। श्रीलोमशजी के आयु की दीर्घता प्रख्यात ही है। श्रीलोमशजी यमुनाजी के तट पर तप कर रहे थे, श्रीकृष्ण भगवान का बालचरित देखके भ्रमवश हुए कि “ये परमेश्वर कैसे कहे जाते हैं।" अतः हरि ने उनको अपने श्वास से खींचकर अपने में अनेक ब्रह्माण्ड तथा अनेक लोमश और बहुत से अद्भुत चरित्र दिखाए, जिसे कल्पान्त पर्यन्त देखते देखते ये अति घबराए, व्याकुल हुए, तब कृपासिन्धु ने इनको श्वास ही द्वारा बाहर कर दिया। इनको वे कई कल्पान्त केवल एक क्षणमात्र सरीखे जान पड़े। भ्रम से छूट प्रभु की स्तुति की, भक्ति वरदान लिया ।। इन्होंने भगवत् की माया देखनी चाही, और श्रीमन्नारायण से अपना मनोरथ निवेदन किया। भगवत् की इच्छा से प्रलयादि देखा, जब बहुत विकल हुए, हरि ने माया अलग की। तब इन्होंने ज्यों का त्यों अपने को पाया और सब अद्भुत चरित्र को एक क्षणमात्र का खेल जाना। बड़ी स्तुति की । “चिरंजीवी मुनि" यह नाम और वर पाया। एक समय अपने चिरंजीवित्व वा दीर्घायुता से अकुलाकर इन्हों- ने अपनी मृत्यु भगवान से माँगा। प्रभु ने उत्तर दिया कि “यदि जल ब्रह्म की वा ब्राह्मण की निन्दा करो तो उस महापातक से मर सकते हो।" इन्होंने कहा कि श्राश्रम में जाता हूँ वहाँ पहुँचकर ऐसा ही करूँगा । मार्ग में भगवत् इच्छा से इन्होंने थोड़ा सा जल देखा जिसमें शुकर के लोटने से अतिशय मलीनता आ गई थी, और एक स्त्री भी देखी जिसके गोद में दो बालक थे। इनके देखते ही देखते उसने पहिले एक बालक को दूध पिलाया फिर अपना स्तन घोकर दूसरे बच्चे को । लोमशजी ने इसका कारण पूछा, उसने कहा कि “यह एक पुत्र तो ब्राह्मण के तेज से है, और वह दूसरा दुसाध नीच जाति से अर्थात् मेरे पति से जन्मा है, अतएव ब्राह्मणोद्भव को धोए स्तन का दूध पिलाया है।"