पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४५

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२२६ mmun.4.4 14-Amareintamam श्रीभक्तमाल सटीक। भाप बोले "रे मूर्ख ! अज्ञान वालक को भी तूने न छोड़ा, जिसका दोष धर्मशास्त्र भी ग्रहण नहीं करता। जा, शूद्र की योनि में जन्म हे दासीपुत्र हो।" वही श्रीयमराजजी श्रीविदुरजी बड़े भगवद्भक्त हा "मुनि शाप जो दीन्हा अति भल कीन्हा ।" श्रीमाण्डव्यमुनि भगवद्भजन कर, शरीर तज, परमधाम को गए ॥ (१४३) श्रीविश्वामित्रजी। श्रीविश्वामित्र राना थे, राजा गाधि के पुत्र । एक वेर राजा विश्वा मित्र नगर आम देखते वन में गए । मुनीश्वर श्रीवशिष्ठजी का आश्र देखा । वहाँ इनकी सेना सहित सारा सत्कार और पहुनई हुई। य नन्दिनी वा सवला नाम गऊ का प्रताप जानकर राजा ने गऊ मार्ग पर ब्रह्मर्षि शिरोमणि ने नहीं कर दी। राजा ने युद्ध किया । परन्तु यद्यपि उसकी बड़ी भारी सेना थी तथापि राजा जीत न सका, पराज पाया । तब ब्रह्मर्षि की महिमा ॐ समझ उसने चाहा कि ब्राह्मा शृगी ऋषि का यश देखिये--कानपुर के जिले मे बल्हौर स्टेशन से मकनपुर को जाना होता है उसी मण्डल मे "शृङ्गीरामपुर" ग्राम है। ___ ऐसी प्रख्याति है कि मकनपुर "विभाण्डक ऋपि" का स्थान है। उसमे लोग यह प्रमाणित करते है कि जब राजा के कर्मचारियो से प्रेरित वेश्याये बडी नौका पर भारूद हो मधुर गान-नत्य करती हुई बाजे के साथ वहाँ आ पहुँची, उस समय श्रीविभाण्डकजी कहाँ टूर जाने के लिये अपने पुत्र के सर्वोपद्रव से रक्षार्थ एक मेडरा ० खीचकर चले गये थे। धीरे २ गड्डातट पर नाव आन पहुँची । शृङ्गीऋषिजी मधुर अपूर्व मान सुनकर मेड़रे को उल्लघन करके देखने चले । श्रीशृङ्गीऋपिजी तो स्त्रीजाति पुजाति का अद ही नही जानते थे, तट पर जाकर खडे २ गान सुनते रहे। इस भॉति तीन दिन जाते आ रहे । नौका पर लगे गमलो के वृक्षो के फलो की जगह लड़ड लटकाये गये थे। एक बेश्या ने उसमें से कुछ फल लेकर ऋषि को भेंट किया और कहा कि हमारे देश के ये फल है, ऋषि ने खाकर अपने स्थान के भी फल उन्हे उपकार किये । चौथे दिन एक वेश्या ने कहा कि हमारे देश की यह रीति है कि अपने प्रेमियो से प्रेमी लोग भेटते है। शृगीजी तो कुछ जानते ही न थे, आलिङ्गन के साथ ही कुछ ऋपि का चित्त उस ओर खिच गया, तदनन्तर वे नौका पर भी गान सुन्न जाने लगे। एक दिन ऋपि को राग सुनने में मग्न देख नै नौका छोड दी गई। परच ऋषि को नौका के भीतर न जान पड़ा कि हम कही जाते है क्योकि उन्होंने कभी नौका देखी न थी। स्वस्थान में जब नाव कई दिनो के पीछे आ गई, तब ऋषि लोग शुगीजी को लेने गये फिर अवर्षण मिटा । आगे की कथा तो विख्यात ही है। उसी विभाण्डक के मेडराके स्थान में स्त्री जाने से भस्म हो जाती थी। इस चमत्कार को देख मुसल्मानो ने स्वराज्य के समय उस पर अधिकार कर लिया। अब भी स्त्री जाति मात्र को भीतर जाने की आजा नहीं है। अद्यापि वहाँ बडा मेला लगता है, परन्तु मेला दूसरे ही अभिप्राय से होता है, वाणिज्य विशेष होती है ।।