पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४७

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- - - - - - - - - -- - - उनको "गोपालचत्र” यता दिया और वरदान दिया कि इस कात्र जो पढ़ेगा वा इमस जिसको झार दंगा को तीनों गायों ने बगा। (१४५) श्रीयाज्ञवल्क्यजी! आप बड़े प्रतापी मुनि है । अापने पहिले श्रीसूर्यनारायण से विध पड़ी। किसी कारण में सूर्य भगवान अप्रसन्न हुए नोइन्होंने ना विचः उगल दी (वमन कर दिया)। यह पनाम देव प्रसन्न हो श्रीरविद में वर दिया कि जो तुमसे वाद-विवाद करेगा उनका शीश फट जाया ___ कह चुके हैं कि आपने श्रीरामचरितमानम (न्या अभुतरामायण श्रीभन्दाजली को मुनाया है | (१४६) श्रीजाबालिजी। आप श्रीअवधेशजी के मंत्रियों में से थे। (1१७) श्रीयमदग्निजी। श्रीयमदग्नि ऋषिभक्तिमाहित अग्निहोत्र यन्न किया करते थे और इन श्री श्रीरेणुकाजी आपही मेवा करती थीं । एक दिन अनि अप्रसन्न होर आपने अपने पुत्र श्रीपरशुरामजी येत्राज्ञानचिनुअग्नीमाता रेणुका का तथा अपने दोनों बड़े भाइयों के शीश अपने परशु से सार । श्रीपरशुरामजी ने पिता की आज्ञा मान ली ।। दो. "अनुचित उत्रित विचार नजि,जे पाहिं पिबैन ! ते भाजन सुख मुयश के, बर्हि अमरयति ऐन ।।" आपने बहुत प्रसन्न हो पुत्र में कहा, वर माँगा परशुरानजी ने मांगा कि “एक तो इन तीनों को जिला दीजिये, दूसरा यह वरदान दीजिये कि ये तीनों मुझसे सदैव प्रति प्रसन्न रहा करें ।। श्रीसीतारामकृपा में ऐसा ही हुआ ll (१४) श्रीकश्यपजी। श्रीकश्यपजी श्रीमवि मुनि के पुत्र हैं। मगर ने भारको दशन दे आज्ञा की कि सृष्टि उत्पन्न करो।।