पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४८

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4rre- ANIMea rineerant-1-MARPALHar++Raranep भक्तिसुधास्वाद तिलक । २२९ ___ कश्यपजी से बहुत कुल प्रगट हुए हैं कि जो "कश्यप गोत्र" प्रसिद्ध है। एक काश्यपी कल्प हुशा था जिसमें सब सृष्टि कश्यपजी से ही हुई थी। (१४६) श्रीमाकण्डेयजी। श्रीमार्कण्डेयजी ने प्रभु से विनय की कि मुझे अपनी माया दिखा- इये । देखा कि जल बाद माया और प्रलय हो गया, सर्वत्र जलमय है और कहीं कुछ नहीं। अपने को उस जल में इधर उधर बहते डूबते उत- गते पाया। अनेक वर्ष पर्यन्त ऐसा ही बीतने पर, एक वट-वृक्ष के एक पत्ते पर बालकस्वरूप प्रभु का दर्शन पा, श्वास द्वारा उनके उदर में जा, वहाँ अनेक अद्भुत देख, पुनि बाहर आ बड़ी स्तुति कर, हरिकृपा से हरि की उस माया से निकले ॥ (१५०) श्रीमायादर्शजी। कोई कहते हैं कि मायादर्श एक भक्तविशेष का ही नाम है, पर उनका पता तो कहीं चलता मिलता नहीं। ___ बहुतेरे बताते हैं कि मायादर्श श्रीलोमशजी वा श्रीमार्कण्डेयजी हैं, क्योंकि दोनों ने माया देखी है । इन महात्मा की कथा देखिये ॥ (१५१) श्रीपर्वतजी। ___ “अद्भुतरामायण" में लिखा है कि एक कल्प में इन्हीं के शाप से श्रीलक्ष्मीनारायणजी ने अवतार लेकर रावण कुम्भकर्ण का वध किया। (१५२) श्रीपराशरजी। श्रीब्रह्माजी के पुत्र श्रीवशिष्ठजी, उनके पुत्र श्रीशक्तिजी उनके पुत्र श्रीपराशरजी हैं। प्रभु ने दर्शन देके श्राक्षा की कि "मैं तुम्हारा पुत्र हूँगा।" श्रीपराशरजी ही के पुत्र श्रीव्यास भगवान (पृष्ठ ४७) हैं, जिन्होंने पुराण बनाए हैं।