पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२२३०........... 1001 4 .. +++ +MAN -1+ + + + ++ + २३० श्रीभक्तमाल सटीक । (१५३) (१८ महापुराण) (११९) छप्पय । (७२४) साधन साध्य सत्रह पुरान, फलरूपी श्रीभागवत ।। ब्रह्म, विष्णु, शिव, लिङ्ग, पद्म, स्कन्द, बिस्तारा । बामनं, मीन, बराह, अग्नि, कूरम, ऊदारा ॥ गरुड़, नारदी, भविष्य, ब्रह्मवैवर्त, श्रवण शुचि । मार्कण्डे, ब्रह्माण्डे, कथा नाना उपजै रुचि ॥ परम धर्म श्रीमुख कथित चतुःश्लोकी निगम सत । साधन साध्य सत्रह पुरान, फलरूपी श्रीभागवत ॥१७॥ (१९७) वात्तिक तिलक । सत्रहो पुराण साधनरूप हैं, और अठारहवाँ पुराण श्रीमद्भागवत साध्यफलरूपी है तदन्तर्गत स्वयं श्रीभगवतमुख कथित परधर्म (भगवतधर्म ) रूप “चतुःश्लोकी भागवत" तो वेदों का सागंश ही है। और वे १८ पुगण कैसे हैं कि कोई कोई अतिविस्तार हैं, और सब उदार, परम पवित्र, और श्रवण करने से धर्मरुचि उत्पादक विचित्र हैं । "श्रीभागवत" सबका सागर, फल रस और प्राण है जैसा कि श्रीनारदजी ने व्यासजी से कहा ॥ ( सात्त्विक ) ( राजस) १ विष्णुपुराण श्लोक २३००० ब्रह्माण्डपुराण श्लोक १२००० २नारदपुराण , ०० ब्रह्मवैवर्तपुराण , १८००० ३ श्रीमद्भागवत , १८००० ६५०० | मार्कण्डेयपुराण ,, १४५०० ४ गरुड़ पुराण , १६०००/१० भविष्यपुराण ५ पद्मपुराण , १०००० ५५०००/७१वामनपुराण , २४०००/१२ ब्रह्मपुराण १०००० ६ वाराहपुराण ७४०००