पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२५२

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । (१५५) श्रीरामसचिव (मन्त्रिवर्ग)। (१२१) छप्पय । (७२२) पाभक्ति अनपायिनी, जे रामसचिव सुमिरन करें। धृष्टी, विजय, जयंत, नीतिपर शुचिर विनीता। राष्टर- वर्धनं निपुण, सुराष्टर परम पुनीता ॥ अशोक सदा आनन्द धर्मपालक, तत्त्ववेत्ता । मंत्रीवर्जसुमंत्र चतुर्जुग मंत्री जेता *॥ अनायासरघुपति प्रसन्न, भवसागर दुस्तर तरें। पावें भक्ति अनपायिनी, जे रामसचिव सुमिरन करें॥ १६ ॥ (१६५) वात्तिक तिलक । अनन्त श्रीमहाराजाधिराज श्रीरामचन्द्रजी के मन्त्रिवर्गों को. जो भक्तजन प्रभातादि कालों में नित्य स्मरण करते हैं, सो अचल श्रीरामभक्ति पाते हैं, और अपने परमभक्त सचिवों के स्मरण करने से श्रीरघुपति अनायास (चिन परिश्रम) ही प्रसन्न होते हैं, अतः श्रीप्रभु की प्रसन्नता से दुस्तर संसारसमुद्र को भी तर जाते हैं-श्रीटिंजी, श्रीजयन्तजी, श्रीविजयजी, ये तीनों अतिशय नीतियुक्त परम पवित्र, तथा शिक्षित और नम्र, श्रीराष्ट्रवर्द्धनजी उभय लोक कृत्यों में परम प्रवीण, श्रीसुराष्ट्रजी अतिशय पुनीत, श्रीअशोकजी सदा प्रेमानन्द- युक्त, श्रीधर्मपालकजी भगवत् तत्त्वज्ञानी, इन सचिवों में वर्य (परमश्रेष्ठ) अपनी बुद्धिविज्ञतासुनीतियुक्ततासे चारों युगों के मन्त्रियों को जीतनेवाले श्रीसुमन्त्रजी॥ १ श्रीधृष्टिजी ५. श्रीसुराष्ट्रजी २ श्रीजयन्तजी ६ श्रीअशोकजी ३ श्रीविजयजी ७ श्रीधर्मपालकजी ४ श्रीराष्ट्रवर्द्धनजी ८ श्रीसुमन्त्रजी

  • "चतुर्जुगमन्त्री जेता" चारो युगो के भूत वर्तमान भविष्य मत्रियों को जीतनेवाले ॥