पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२३४ aurantart ..... ...... ___चौपाई। २२३४...... श्रीभक्तमाल सटीक। श्लोक-धृष्टिर्जयन्तो विजयः सुराष्ट्रो राष्ट्रवर्द्धनः। 8 अकोपो धर्मपालश्च सुमन्त्रश्चाष्टमो महान् ॥ १॥ (बा०रा०) (१५६) श्रीसुमन्त्रजी।। श्री ६ सुमन्त्रजी के विवेक, महाविरह, प्रमे, धैर्य आदिक गुण श्रीमानसरामचरित से सबको विदित ही हैं। "तुम्ह पितु ससुर सरिस हितकारी। मन्त्रिहि राम उठाइ प्रयोषा । “तात ! धरममत सब तुम्ह सोधा इत्यादि। (१५७) श्रीरामसहचरवर्ग। (१२२) छप्पय । (७२१) शुभदृष्टि दृष्टि मोपर करौ, जे सहचर रघुबीर के॥ दिनकरसुतं, हरिराज, बालिबई केशरिऔरस। दधिमुखें, दुबिद, मयंद, ऋच्छपति सम, को पौरस ॥ उल्का सुभट सुषेन, दरीमुखं, कुमुदं, नीले, नले। सरभैरे, गवै गवाच्छ, पनसे, गधमादन, अतिबल ॥ पद्मअठारहयूथपाल, रामकाजभट भीर के *शुभदृष्टि वृष्टि मोपर करौ, जे सहचर रघुवीर के ॥२०॥ (१६४) वात्तिक तिलक। जगविजयी श्रीरघुवीर के संग चलनेवाले जो जो सखावर्ग हो सो श्राप सब मुझ पर कृपा प्रसन्नतायुक्त शुभदृष्टि की वर्षा कीजिये। श्रीदिनेशपुत्र कपिराज श्रीसुग्रीवजी, बालिपुत्र श्रीअंगदजी, श्रीकेशरी- नन्दन हनुमानजी, श्रीदधिमुखजी, श्रीदिविदजी, श्रीमयन्दजी और जिनके समान दूसरे का पुरुषार्थ नहीं ऐसे ऋक्षराज श्रीजाम्बवानजी, परम सुभट श्रीउल्कामुखजी, श्रीसुषेणजी, श्रीदरीमुखजी, श्रीकुमुदजी, श्रीनीलजी, श्रीनलजी, श्रीशरमजी, श्रीगवयजी, श्रीगवाक्षजी,

  • पाठभेद-"अशोको"। कहा जाता है कि मन्त्रिवर श्रीसुमन्त्रजी श्रीचित्रगुप्तवशी

थे ।*"भीर"-मोड़, समूह समीप ।