पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२५४

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२३५ marriane wentifier +Huawenmantri -1404- minuTHRAMM -- भक्तिसुधास्वादतिलक । श्रीपनसजी, अतिशय बली श्रीगन्धमादनजी, इत्यादिक अठारह पद्म यूथपति, और भी सेनासमूह के सम्पूर्ण भट श्रीगमकार्य करनेवाले भी मुझ पर कृपादृष्टि की वर्षा कीजिये। १ श्रीसुग्रीवजी |१० श्रीदरीमुखजी २ श्रीहनुमानजी ११ श्रीमुकुंदजी ३ श्रीअङ्गन्दजी १२ श्रीनीलजी ४ श्रीजाम्बवानजी १३ श्रीनलजी ५ श्रीदधिमुखजी १४ श्रीशरभजी ६ श्रीद्विविदजी १५ श्रीगवयजी ७ श्रीमयन्दजी | १६ श्रीगवाक्षजी ८ श्रीउल्कासुभटजी १७ श्रीपनसजी ६ श्रीसुषषजी | १८ श्रीगन्धमादनजी (१५८) महावीर श्रीहनुमानजी। जब श्रीसीतारामजी राजसिंहासन पर विराजे, और चारों दिशाओं से सब मुनि लोग दर्शन के लिये श्रीअयोध्याजी में इकट्ठे हुए, तब प्रभु ने श्रीअगस्त्यजी महाराज से पूछा कि-- चौपाई। “सौरज, बीरज, धीरज, नीती। वरविक्रम, दक्षता, प्रतीती॥ तिमि प्रभाव, प्रज्ञता, प्रमाना। हनुमतहियकियश्रयन निदाना। हनुमत चारु चरित बिस्तारा । सुखद सुनाइत मोहिं उदारा ॥" तथा नैमिष क्षेत्र में ऋषियों ने श्रीसूतजी से पूछा कि-- दो." एकादश रुद्राहि कहत, महाशंभु अवतार। ताकी जगजीवन कथा, कहौ सूत विस्तार ॥" इसके उत्तर में- सो. "कह अगस्त्य भगवान, सत्य कहहु रघुवीर तुम। नहिं हनुमान समान, गति मति बलहू में कोक” ॥१॥ कहेउ सूत "सुख मूल, कहीं चरित्र पवित्र अब।। हरण सकल अघशूल, चितलगाय ऋषिगण सुनौं” ॥२॥