पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२५५

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MH- श्रीभक्तमाल सटीक । श्रीकशरीप्रिया शुभवतरता परमविनीता श्रीभञ्जनाजी एक समय धीरे धीरे विचरती हुई वन और पर्वत की शोभा देख रही थीं, उसी समय श्रीपवनदेव के उद्धेग से आपका वस्त्र उड़ने लगा था, इससे नापने वायुदेष पर क्रोध करना चाहा। परन्तु श्रीमरुतदेवजी ने कोमल वाणी से प्राप- को श्रीरामकथा से श्रीब्रह्माजी का विचार सुनाकर बहुत कुछ समझाया- चौपाई। "तूं भय मानहि मति मन माहीं। हम तव तन व्रत हिंसब नाहीं ॥" और-छन्द । "होइहि महाबलवान बुद्धि-निधान सुत मेरे दिये। अति तेजमान महान सत्त्व पराक्रमी ममसम तिये ॥" "वीरज विलंघन बेगवान सु मोहुतें अधिकाइके। अस तनय लहि तिहुँलोक तेरो सुयश रहिहै छाइकै ॥" पुनि और देवता भी आके उसी देशकाल में आपसे बोले- छन्द। "भय छाँहि संशय तजौ, चिन्ता त्याग मन धीरज धरौं । पिय-त्रास, लोक-विवाद को सन्देह चित से परिहरी॥" "आए महाशिव गर्भ तव ये देव मुनि चिन्ता हरै। करिबोगनिशिचरकुल निधन, विधि, धेन की रक्षा करें ॥१॥ मन पवन खग से गति अधिक, पदकंज जे चितलावहीं। धार चरण निज सुर सीस पै, साकेत पद नर पावहीं ॥ सियनाह सेवा करन हित जग माहिं यह अवतार है। सेवै सिया रघुनाथ के पदकंज गुण से पार है ॥ २॥" दो० "धर्मशील विद्या निपुण, सकल कला परवीन, __प्राचारज ये होयेंगे, रहे विश्व प्राधीन ।" सो० "सुर सब भेव जनाय, गए सकल निज निज भवन । सुनो सजन चितलाय, अन कथा भवभयहरन ॥" "महामरुत की मूल, तेज गर्भ उर धारिक । सुख संपति अनुकूल, अंजनि निवसी गिरिगुहा ॥" निदान शरदऋतु, कार्तिक मास, कृष्णपक्ष चतुदर्शी, भौमवार,