पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२५६

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भक्तिसुधास्वाद तिलक । -- - M .44up+AWABHARAMINAHtte २३७ स्वाति नक्षत्र, मेष लग्न, उच्च उच्च स्थानों में सब ग्रह, एवं सर्व योगों तथा समय के सब विधि अनुकूल होने पर- दो० "निशा दिवस के सन्धि में, मुद मंगल दातार। महाशम्भु परगट भए, हरन हेत भवभार ॥ १॥" "खल अरविन्द विनाशकर, सुजन कुमुदवानन्द । अंजनि उर अंभोधि ते, उदित भए कपिचन्द ॥२॥" धन्य धाम अरु धन्य थल, धन्य तात अरु मात । धन्य वंश हि वंश में, जन्मे तिहुँपुर त्रात ॥ ३ ॥ "करहिं वेदधुनि विप्रगण, जे जे शब्द विशेष। सुख समाज तेहिकाल को, कहिन सकेसत शेष ॥ ४ ॥ कवित्त । "मङ्गल सु मास, कल कातिक सरद बास, मंगल प्रथम पक्ष, चौदसि सोहाई है । मंगल सुबार, महामंगल नखत स्वाती, संध्या समय, मंगल लगन मेष आई है । मंगल सुथल, जल, अनल, सुमंगल भे अनिल, अकास झरी फूल की लगाई है। मंगल स्वरूप हनुमन्त जन्म मंगल की, बाजरस राम जग मंगल बधाई है ।। १ ॥ भारे, सूर्य को देख, श्रीभंजनीनन्दन, बालभाव से लाल फल अनुमान करके उछले कि रवि को मुख में रख लें। यह प्रभाव देख, देव दानव सब विस्मयवन्त हुए। रवि के तेज को विचारके श्रीपवनदेव भी पुत्र के पीछे पीछे शीतलता करते हुए जा रहे थे । एवं, श्रीदिवाकर भग- वान ने भी इन्हें श्रीरामकृपापात्र जानकर अपने ताप का लेश भी इनको नहीं लगने दिया ॥ . उसी दिन सूर्यग्रहण का योग था, इसलिये गहु श्रीभानु भगवान् के समीप गया वहाँ श्रीपवनसुत को देख, भयमान राड्ड वहाँ से लौट सुरेश से जा कहने लगा कि आप ही ने सूर्य तथा चन्द्र को मेरा ग्राह्य निर्मित किया। फिर आज आपने मेरा भाग दूसरे को क्यों दे दिया है ? यह सुन सुरपति अपने ऐरावत नाम (श्वेत) हस्ती पर चढ़के शीघ्र ही वहाँ पहुँचे कि जहाँ सूर्यदेव और मारुती थे॥ श्रीअंजनिनन्दनजी राहु को नील फल मान सूर्य को छोड़ पहिले