पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२५८

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+- A Mun मा0Huntaimenaul + Mitramant+ भक्तिसुधास्वाद तिलक। २३९ तेज का. (शतांश) अनुग्रह किया, और कहा “मैं इन्हें शास्त्र पढ़ा दूँगा।" पुनः सवने अनेक विचित्र अद्भुत वरदान प्रापको दिये, जिनका विस्तृत वर्णन कहाँ तक किया जावे ॥ दो० "देखि सुरन के बरन ते, भूषित हनुमत काहिं। पुनि बोले बिधि पवन पति, अति प्रसन्न मन माहि॥" चौपाई। "यहिके सेवा बस रघुनाथा । यहिके बेगि बिक हैं हाथा ।। मारुत ! तब, यहि सुत को पाई। रहिहै सुयश तिहूँ पुर छाई॥" दो० अस कहि विधि अमरन सहित, दै दे वर वरदान । गवने पवनहि पूछि सब,अपने अपने थान ॥१॥ कारण रुद्र अनेक के, “महाशंभु" परधाम । समय समान स्वरूप करि, सेवहिं सीताराम ॥२॥ तेज प्रभु रुचि पाइके, प्रविसे पवन स्वरूप। "अंजनिमारुत-सुत” भए, कपि वपु विरचि अनूप ॥३॥ गिरि सुमेर के मुनि सकल, सादर सदन बुलाय । पूजि पगन मेले ललन, भोजन विविध कराय॥४॥ तब आनन्दित अंजना, केसरि बसि निज गेह । दम्पतिसुतहिं दुलारही, दिनप्रति सहित सनेह ॥ ५ ॥ आपके जन्म के चरित्र को प्रसिद्ध महानुभाव सन्तमण्डल भूषण श्री ६ “श्रीमतीशरण गोमतीदास" महाराजजी ने छपवाकर अपने श्रीहनुमत् निवास से प्रकाशित किया है, उसकी तथा श्रीरामनामानुरागी मुन्शी श्रीरामअम्बेसहायजी कृत श्रीकाशीजी की छपी "श्रीहनुमत् जन्म विलास” को देखिये ॥ श्रीमारुतिजी के सुयश श्रीवाल्मीकीय में एवं श्रीगोस्वामी तुलसी- • दासजी कृत जगविख्यात ग्रन्थों में प्रेमीजन पढ़ते सुनते हैं ही। है और एक चुटकुला यहाँ भी देख ही आए हैं। . (वि.) “जयति अंजनीगर्भ अम्भोधिसम्भूत" दो० “नमो नमो श्रीमारुती, जाके बस श्रीराम। करहु कृपा निशिदिन जपौं,श्रीसिय सिय-पिय-नाम ॥"