पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२६०

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e ntra++MarrintumentremiN umanParentertainment चौपाई। भक्तिसुधास्वाद तिलक निज उरमाला बसन मणि, बालि तनय पहिराइ। विदा कीन्ह भगवान तब, बहु प्रकार समुझाइ ॥ २॥" श्रीअङ्गदजी की माता, श्रीताराजी, जो "पंच कन्या" में से हैं, अति- शय सुन्दरी, बुद्धिमती, पतिव्रता, गुणमयी तथा श्रीसीताराम भक्ता हैं। इनकी प्रशंसनीय वार्ता श्रीवाल्मीकीय में देखने योग्य ही है ॥ (१६०)श्रीजाम्बवन्तजी। श्रीजाम्बवारजी श्रीब्रह्माजी के अवतार हैं। दो० "जानि समय सेवा सरस, समुझ कर अनुमान । पुरुखा ते सेवक भए, चतुरानन अँबवान ।।" "जाम्बवन्त मन्त्री मतिमाना। अति विजयी बल बुद्धि निधाना॥ नामनिष्ठ अति दृढ़ विश्वासी । सेतु समय अस बचन प्रकासी ॥" सो० "सुनहु भानुकुखकेतु, जाम्बवन्त करजोरि कह। नाथा नाम तव सेतु, नर चढ़ि भवसागर तरहि ॥" (१६३ ॥ १६२) श्रीनलजी और श्रीनीलजी। "नाथ । “नील-नल” कपि दोउ भाई । लरिकाई ऋषि आसिष पाई ।। तिन्हके परस किये गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥" सो. "सिन्धु बचन सुनि राम, सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ । अब विलम्ब केहि काम, करहु सेतु, उत्तर कटक ॥" चौपाई। "शेल विशाल पानि कपि देहीं । कन्दुक इव नल नील ते लेहीं॥ देखि सेत अति सुन्दर रचना। विहँसि कृपानिधि बोले बचना॥ जे "रामेश्वर" दरशन करिहहिं । ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं । होय अकाम जो छलतजि सेइहि । भक्ति मोरि तेहि शंकर देहि ॥" दो० "श्रीरघुबीर प्रताप ते, सिन्धु तरे पाषान। ते मति मन्द ने राम तजि, भजहिं जाइ प्रभु, धान ॥" यूथेश्वर दोनों प्राता नलजी और श्रीनीलजी का भी, लङ्का की चौपाई।