पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

++ ++ ri-49++++ २४२ २४२ श्रीभक्तमाल सटीक । श्रीभक्तमाल सटीक। लड़ाई में श्रीकृपा से जो पराक्रम देखने में आया, सो श्रीवाल्मीकीय में वर्णित और प्रशंसनीय है। ___ और, श्रीअवधपति रामजी महाराज के सिंहासनस्थ होने पर, "चीन"देशीय राजा, “वीरसिंह ने अपनी वीरता प्रकट करने के लिये, श्रीराधव से युद्ध (दूत द्वारा) माँगा, तब श्रीरामजी युद्धोन्मुख हये। उसी समय खड़े हो प्रणाम करके, आबा लेके, निज शत्रभंजनी सेना सहित श्रीनल-नीलजी ने चीन पर चढ़ाई की। वहाँ जाय, रात्रिदिवस पचीस दिन संग्राम करके वीरसिंह का वध किया, और श्रीरामजी की दोहाई फिराई । पुनः शरणागत आने पर, श्रीरामाज्ञा पाके, “वीरसिंह के पुत्र “इन्द्रमाणि" को चीनी राज- सिंहासनासीन करके तब श्रीनल-नीलजी श्रीरामपार्श्व में प्राप्त हुए। श्रीराघव दयासागरजी उक्त वीरों से अंक भरि भेटे, और अन्त में निज पद का लाभ दे, कृतार्थ किया ॥ (१६३) नवों नन्दजी। (१२३) छप्पय 1 (७२०) ब्रज बड़े गोप “पर्जन्य" के सुत नीके नव नन्द ॥ धरानन्द, ध्रुवनन्दं ,तृतिय उपनन्द, सु नागर । चतुर्थ तहाँ अभिनन्द, नन्द मुखासिन्धु उजागर ॥ सुठि सुनन्दं पशुपाल, निर्मल निश्चय अभिनन्दन । कर्मा, धर्मानन्द, अनुज बल्लभ जगवन्दन ॥ आसपास वा बगर* के, जहँ बिहरत पशुप सुबन्द । ब्रज बड़े गोप "पर्जन्य"के,सुत नीके नव नन्द ॥२१॥(१९३) "जसुमति नन्द जगत् में जिनकी कीरति सरद जुन्हाई । तिनके आनि परम पुन्यनते प्रगटे कुँवर कन्हाई ॥" “वगर' = टोला, पुरवा, फैलाव ।। भिन्न भिन्न अन्थो मे, कई नाम भिन्न पाये जाते है "वल्लभनन्दन" के स्थान में "नन्दन' वा 'अभिनन्दन" एवमादि । बहुत सी हाथ की लिखी पुरानी प्रतियो को मिलाके जो पाठ अधिक पोथियो में मिला सोई लिखा है ।