पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२६२

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भक्तिसुधास्वाद तिलक। वातिक तिलक । गोकुल (अज) में (१) सुजन्यजी (२) श्रीपर्जन्यजी (३) अर्जन्य और (४) राजन्य, ये चारों गोप सहोदर भ्राता थे, तिनमें तीन भाइयों के वंश का तो वर्णन नहीं, श्री “पर्जन्य" जी नवों नन्दों के बड़े (नामवृद्ध पिता) थे, इन्हीं के सुन्दर सुत नवों नन्दजी थे, अर्थात् श्रीधरानन्दजी, श्रीध्रुवानन्दजी, तीसरे परम प्रवीण (सुना- गर) श्रीउपनन्दजी, तिनमें चौथे श्रीअभिनन्दजी, और सुख के समुद्र परम प्रसिद्ध महर श्रीनन्दजी । गौवों के विशेष पालक, निर्मल, निश्चय करके प्रभु को प्रानन्द देनेहारे श्रीसुनन्दजी, श्रीकानन्दजी, तथा श्रीधर्मानन्दनी, और इन आठों के छोटे भाई जगत् में वन्दनीय श्रीवल्लभजी । जहाँ गोपाल लोग स्वच्छन्दता से विहरते थे, तिस बगर के आसपास में नवों नन्द विराजते थे। __ मैं उनके चरण की धूरि चाहता हूँ। १ श्रीधरानन्दजी, ६ श्रीसुनन्दजी, २ श्रीध्रुवनन्दनी, ७ श्रीकर्मानन्दजी, ३ श्रीउपनन्दजी, ८ श्रीधर्मानन्दजी, ४ श्रीश्रभिनन्दनी, ६ श्रीवल्लभनन्दजी, .५ श्रीनन्दजी, सुखसिंधु पाठभेद कई हैं। जो श्रीकृष्ण भगवान के ही पिता वा चचा हैं, भला उनकी बड़ाई कहाँ तक की जा सकती है। ( १२४ ) छप्पय । ( ७१९) बाल वृद्ध नर नारि गोप, हौं अर्थी उन पादरज॥ नन्द गोप, उपनन्द, ध्रुव धरानन्द, मंहरिजसोदा।कीर- तिदा "वृषभानु" कुँअरि सहचरि (बिहरति) मन मोदा ॥ मधु, मंगल, सुबल, सुबाहु, भोज, अर्जुन, १ "महरि"=बड़ी, महर की स्त्री । २ प्रेम की मुख्य आदर्श श्रीकीति-सुता वृषभानु-धरि श्रीराधिकाजी की जय, प्रेम जितना ही ऊँचा पवित्र और निस्वार्थ होता है, उसका चित्र उतना ही टिकाऊ, चमकीला और मनोहर होगा।