पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२६३

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२४४ श्रीभक्तमाल सटीक। P a + +++ + +++++ ++madaranduto- श्रीदामा। मंडल ग्वाल अनेक श्याम संगी बहुनामा॥ घोष निवासिनि की कृपा, सुर नर बांछत आदि अज। वाल वृद्ध नर नारि गोप, हौं अर्थी उन पाद रज॥ २२॥ (१६२) (१६४)गोपन्द "वृद्ध तरुन बालक अति सुन्दर गोप अथाइन बैठे। कोई पाग लटपटी बाँधे कोऊ मेंटा ऐंठे । कोई बाँधे मोर पखोवा कोऊ बाँधे जंगे। लटपट श्रावत गैयन पाळे गावत तान तरंगे ॥" वात्तिक तिलक। जिन घोषनिवासियों (गोप, गोपियों) की कृपा को ब्रह्मादिक सुर नर लोग चाहते हैं, तिन बालक वृद्ध और स्त्री पुरुष गोपों के पाद- रज का मैं अर्थी हूँ, अर्थात् जाँचता हूँ। उनमें मुख्यों के नाम-(१) महर श्रीनन्दगोपजी, (२) श्रीउपनन्दजी, (३) श्रीध्रुवनन्दजी, (४)श्रीधरानन्दजी, (५) महरि श्रीयशोदाजी, (६) स्मरणमात्र से कीर्ति देनेवाली श्रीवृषभानुजी की त्री श्री “कीर्ति" जी, (७) श्री. वृषभानुजी, (८) सदा प्रसन्न भानन्दयुक्त मनवाली सखियों के सहित श्रीवृषभानुनन्दिनी श्रीराधिकाजी, (६) श्रीमधुजी, (१०) श्रीमं- गलजी, (११) श्रीसुवलजी, (१२) श्रीसुबाहुजी, (१३) श्री. भोजजी, (१४) श्रीअर्जुनगोपनी, (१५) श्री "श्रीदामा जी, तथा (१६) श्रीश्यामसुन्दरजी के साथी, अनेक नामवाले, अनेक ग्वाल मंण्डलों के पद-रज को मैं चाहता हूँ ॥ धन्य गोकुल व्रज, धन्य धन्य वहाँ के वासी, और धन्य धन्य उन सबकी चरणरज ॥ - -- १"घोष"-अहिरो का टोला, घोसियो का पुरवा, अहीर, घोसी, ग्वाल, गोप । २ "आदि अज"-अजादि, विरचिप्रमुख, विधि प्रभृति, ब्रह्मा आदि ।