पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२६६

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++HIMidndita Amerpred-PROMHELA -MINPABuH- ....................... -Humairtuna--NAMRPAN .... भक्तिसुधास्वाद तिलक । (१७१) सप्तद्वीप के भक्त (१२६) छप्पय । (५१७) सप्तद्वीप में दास जे ते मेरे सिरताज ॥ जम्बू, और पलपच्छे, सालमलिं बहुत राजऋषि । कुश, पवित्र, पुनि क्रौंच, कौन महिमा जानै लिषि ॥सार्क बिपुल विस्तार, प्रसिधनामी अति पुहकर “पर्वत लोकालोक" ओक टापू कंचनधर"। हरिभृत बसत जे जे जहाँ, तिन सों नित प्रति काज। सप्तद्वीप” में दास जे ते मेरे सिरताजा ॥२४॥ (१६०) बात्तिक तिलक । सातो द्वीपों में जितने श्रीभगवदास जहाँ २ हैं सो सब, मेरे मस्तक के मुकुट हैं (१)जम्बूद्वीप (२) लक्षद्वीप (३)शाल्मलि द्वीप इनमें बहुत से राजर्षि भगवद्भक्त हैं, (४) परमपवित्र कुशदीप तथा (५) काँचद्वीप में जो भक्तसमूह हैं तिनकी महिमा जो अनेक पुराणों में लिखी हुई हैं सो कौन जान सकता है (६) बहुत विस्तारवाला शाकद्वीप और (७) उससे भी अतिप्रसिद्ध नामी बड़ा पुष्करदीप, तथा लोकालोक पर्वत एवं कांचनवर टापू के स्थानों और श्राश्रमों में जहाँ-जहाँ जो-जो, श्रीभगवत् के सेवक बसते हैं उन्हीं से नित्य ही मेरा प्रयोजन है, वे ही मेरे शीश के मुकुटमणि हैं। ___ चौपाई। “मोरे मन प्रभु श्रस विश्वासा। राम ते अधिक राम के दासा ॥" १जम्बृद्धीप ५ क्रौंचदीप २ लक्षदीप ६ शाकदीप ३ शाल्मलिदीप ७ पुष्करदीप ४ कुशदीप (इति “सप्तदीप)

  • "ओक" स्थान, आश्रम ॥ "ताज"टोपी, मुकुट । कांचनघर"=टापू तथा, "लोका-

लोक पर्वत," इन सातो द्वीपो से बाहर है। + अपना यह “भारतवर्ष" देश, ( भरतखंड ) जम्बूद्वीप ही में है। प्रथम (जम्बू) द्वीप से दूसरा दूना है, उससे उत्तर उत्तर दूना । अर्थात् द्वितीय से