पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२६८

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न Handir जम्बूद्वीप के नको अधीश भगवान गिनती भक्तिसुधास्वाद तिलक । २४९ उनके सेवक श्रीभद्रश्रवाजी, (६) केतुमालखण्ड के स्वामी श्रीकामदेव भगवान और उनकी पूजा करनेवाली उपमारहित श्रीकमलाजी हैं ।।। । पुजारी खण्ड १ इलावतखंड संकर्षण भगवान सदाशिव रमणकखंड मत्स्य भगवान श्रीमनुजी | हिरण्यखंड कूर्म भगवान श्रीअर्थमाजी (उत्तर) कुरुखंड वाराह भगवान श्रीभूदेवाजी हरिवर्षखंड नृसिंह भगवान् श्रीप्रह्लादजी किम्पुरुषखंड श्रीसीतारामजी श्रीहनुमानजी | भरतखंड श्रीलक्ष्मीनारायणजी श्रीनारदजी | भद्राश्वखंड हयग्रीव भगवान श्रीभद्रश्रवाजी केतुमालखंडकामदेव भगवान् श्रीलक्ष्मीजी इसी (किम्पुरुष) खण्ड ही में महारानी श्रीमिथिलेशललीजी की तथा श्रीजानकी जीवन की सेवा, श्रीसीताजनीदुलारेजी कई ( "कपिमहा- वीर","श्रीरामदूत," "श्रीमारुतिवीर कला, "श्रीचारुशीला,” इत्या- दिक,) रूप से सदैव करते हैं । एवं, वहीं मुमुक्षु जनों को श्रीकेशरी- नन्दन कपीशजी, श्रीरामायणीय कथा और श्रीसीतारामाराधन सिखला के मुक्त कराते हैं। r0+ - uod (अथ देशकाल ) यह तो विदित है ही कि हम सब इसी खण्ड (जम्बूद्वीप भरतखण्ड ) के आर्यावर्त देश में है। भरतखण्ड को "भारतवर्ष" भी पुकारते हैं, तथा इसी को विदेशी "हिन्दोस्तान"huye एब "इडिया" India भी कहते हैं । और यह मन्वन्तर जिसमे हम सब वर्तमान है 'देवस्वत मन्वन्तर" है। . इस मन्वन्तर के अट्ठाईसके चतुर्युग का यह "कलियुग" है, जिसके ४३२००० वर्षों में से केवल प्रथम ही चरण का ५००५ [पाँच सहस्र पाँचवा ] सवत्सर, अर्थात् विक्रमी संवत् १९६१ यह है, अस्तु ।। (जिस समय यह लिखा जाता है)। इन्ही श्रीवैवस्वत मनुजी के वंश मे "श्रीदशरथ चक्रवर्तीजी' हुए, जिनके पुत्र हो स्वयं साकेतविहारी शाघिर श्रीसीतापति रामचन्द्र महाराजजी प्रगट हुए है ।। ..४७वे पृष्ठ प्रथम छप्पय (पाँचवे मूल ) मे अन्यकर्ता स्वामी मन्वन्तरो की वन्दना कर आए है। जिनमे से श्रीवैवस्वत मनुजी [ वर्तमान ] की वन्दना, आप आठवी पट्पदी नाम बारहवे मूल [ पृष्ठ १७९ ] मे करते है।