पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२७७

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MahararuaaTupremAMAHAurautumetreena-andu4NIA २५८ श्रीभक्तमाल सटीक। प्रथम हरि बपु धरे, त्यों चतुयूँह कलियुग प्रगट ॥२८॥ (१८६) वैष्णव चारो सम्प्रदाय। (१३४) दोहा । (७०६) “रमा” पद्धति रामानुज, विष्णु स्वामि "त्रिपुररि"। निम्बादित्य, सनकादिका," मधुकर, गुरु "मुख चारि"॥२६॥ * (१८५) १ श्री "श्री" सम्प्रदाय श्रीरामानुज रामानन्द स्वामी सम्प्रदाय २ श्रीशिव सम्प्रदाय श्रीविष्णुस्वामी सम्प्रदाय ३ श्रीसनकादिक सम्प्रदाय-श्रीनिम्बार्कस्वामी सम्प्रदाय ४ श्रीब्रह्म सम्प्रदाय श्रीमध्वाचार्य सम्प्रदाय + वात्तिक तिलक । (१) यतीन्द्र स्वामी श्री ६ रामानुज महाराजजी भाष्यकार, बड़े ही उदार, श्रीसीतारामभक्तिरूपी अमृत के सागर, कल्पवृक्ष के समान जगत् में सर्वकामप्रद । (२) श्रीविष्णु स्वामीजी महाराज, संसारसमुद्र से पार करनेवाले दीर्घ नाव (जहाज)। (३) श्रीमध्वाचार्यजी महाराज, ऊसर के सूखे सर समान जीवों के हृदय में श्रीभक्तिरूपी जल वर्षा करके भरनेवाले धन, और- पाँचवाँ दोहा (वा उन्तीसवाँ मूल) यही दोहा है । • नोट-नास्तिक ससार को श्रीभगवत् ने शकराचार्यजी के द्वारा आस्तिक और सनातन धर्मनिष्ठ स्मार्त बनाया और फिर कृपा करके श्रीविष्णुस्वामी, श्रीनिवार्कस्वामी, श्रीमध्वस्वामी, श्रीरामानुजस्वामी और श्रीरामानन्दस्वामी इन पांचों आचार्यों के द्वारा स्माता और अद्वैतवादियो मे से भी बहुतों को भागवत बनाने की कृपा की, जिनकी कथाये सत्रहवी शताब्दी तक की इस भक्तमाल में है। टिप्पणी--कलियुग में अनेक सम्प्रदाय और पथ होते जानकर, गोस्वामी श्रीनाभाजी में केवल वैष्णव भक्तो की ही "भाममाला" लिखी, इसलिये नानकपथी, उदासी, इत्यादिक महात्मा अपने मन में कुछ और न समझें ।।.