पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२७८

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...-1MMM .HINDHAMARINEMAME AMMA--14timent. भक्तिसुधास्वाद तिलक 1 २५९ (४) श्रीनिम्बार्कजी महाराज, जनों के अज्ञानरूपी कुहेसे को नाश करके उनके हृदय में ज्ञान तथा भक्ति प्रकाश करनेवाले सूर्य, भागवत जन्म, भागवत कर्म, भागवतधर्म, तथा भगवत् धर्मों के चारों सम्प्रदाय, आप ही चारों के स्थापित किए हुए अचल हैं। जैसे भगवान् पहिले चौबीस रूप से अवतरे, वैसे ही भगवत् ही कलियुग में इन चारों प्राचार्यरूप प्रगट हो चारों भागवत सम्प्रदाय स्थापन किये हैं। __ स्वामी श्रीरामानुज की पद्धति, श्रीलक्ष्मीजी की और श्रीविष्णु स्वामी जी की पद्धति, श्रीशिवजी की है। श्रीनिम्बार्क पद्धति के प्राचार्य श्रीसनकादिक है, और श्रीमध्वाचार्यजी का मार्ग श्रीगुरु ब्रह्माजी की पद्धति है। (१)श्रीनिम्बादित्यजी। (१३५ ) टीका । कवित्त । (७०८) निम्बादित्य नाम जाते भयो अभिराम कथा, प्रायो एक दंडी ग्राम, न्योतो करी, आए हैं। पाक को अबार भई, संध्या मानिलई जती, "रतीहूँ न पाऊँ" वेद वचन सुनाए हैं। आँगन में नींव, तापे शादित दिखायो वाहि, भोजन करायो, पाले निशि चिह्न पाए हैं। प्रगट प्रभाव देखि, जान्यो भक्ति भाव जग, दाँवै पाइ, नाँव पखो, हस्सो मन, गाए हैं ।। १०६॥ (५२३) बात्तिक तिलक । ___ भागवतधर्मप्रचारक स्वामी श्रीनिम्बादित्य (निम्बार्क)जी के ग्राम में एक समय एक दंडी स्वामी आए, आपने उनका न्योता किया, संन्या- सीजी इनके स्थान में आए। शिष्टाचार तथा रसोई में संध्या (वरंच अधिक विलम्ब) हो गई, यतीजी ने वेद वचन का प्रमाण देकर कहा कि “रात्रि में रतीमात्र भी मैं पाता नहीं हूँ।" यह सुन, आपको दया आई कि मेरे रामजी के यहाँ अतिथि उप-

वास करे (और मेरी ही असावधानता से 1) यह विचारकर आपने

१ "रत्ती" भाशा २"दांवपेच, अवसर, अवकाश, सन्धि, सुगमता