पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२७९

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ANDP4HINMAusnd नान14da nde श्रीभक्तमाल सटीक। कहा कि इस आँगन में जो “निम्ब" का वृक्ष है, उस पर देखिये कि अभी ("अ" वा "मादित्य) अर्थात् सूर्य देव विराजते हैं, और ऐसा ही देखाके दंडीजी को सन्तुष्टतापूर्वक प्रसाद पवा दिया। पीछे, (दो तीन घड़ी) रात्रि के चिह्न पाकर, दंडीजी ने आपका प्रभाव प्रकट देखा, तथा जगत् में सर्वत्र इनकी भक्तिभाव की दाव एवं महिमा प्रख्यात हो गई, और इसीसे आपका यह नाम (निम्बाक) विख्यात हुआ। ___ इसी से मेरा मन हर गया, और मैंने श्रद्धापूर्वक आपका यश गान किया। थाप दक्षिण में "श्रीगोदावरी गंगा" के तट "मुंगेर" नाम के प्राम के वासी महाराष्ट्र ब्राह्मण "अरुणजी” और माता "जयन्तीजी" के पुत्र हैं। भगवान ने "श्रीहंस” अवतार लेके श्रीसनकादिक को उपदेश किया और श्रीसनकादिक से श्रीनारदजी ने पाया, जिससे यह सम्प्रदाय “सनकादिक सम्प्रदाय" कहलाता है, उसी को स्वामीजी ने श्रीनारद- जी से पाके प्रचलित किया, जिससे वही श्रीनिम्बार्क (निम्बादित्य) सम्प्रदाय के नाम से विख्यात हुआ। गोलोकवासी श्रीकृष्ण भगवान् की माधुर्य उपासना इस संप्रदाय की मुख्य बात है। आपकी गादी (१) अरुण और (२) सलेमावाद इत्यादि नगरों में हैं। निम्बार्क सम्प्रदाय तथा श्रीसम्प्रदाय की "श्रीगुरुपरम्परा धागे देखिये--- १ श्रीनारायणजी ६ श्रीयामुनाचार्यजी २ श्रीलक्ष्मीजी १० श्रीपूर्णाचार्यजी ३ श्रीविष्वकूसेनजी ११ श्रीभाष्यकार स्वामी ४ श्रीशठकोपजी रामानुजजी ५ श्रीवोपदेवजी १ श्रीहंसभगवानजी ६ श्रीनाथमुनिजी २ श्रीसनकादिकजी ७ श्रीपुण्डरीकाक्षजी ३ श्रीनारदजी = श्रीराममिश्रपरांकुशजी ४ श्रीनिम्बादित्यजी