पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८०

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InHerdinaranM- Intein- HOT-41.40minaJHANI.M AMAMMIN भक्तिसुधास्वाद तिलक । (२) स्वामी अनन्त श्रीरामानुजजी।। (१३६) छप्पय । (७०७) सम्प्रदायशिरोमणि "सिन्धुजा" रच्योभक्तिवित्तान॥ "विस्वकसन” मुनिवर्य, सुपुनि "सठको” प्रनीता । “वोपदेवं” भागवत लुप्त उधयो नवनीता ॥ मङ्गल मुनि "श्रीनार्थं "पुण्डरीका परमजस । “रामंमिश्र" रस रासि, प्रगट परताप “परांकुस' ॥ “यामुन मुनि" "रामानुज तिमिर हरन उदय भान । सम्प्रदायशिरो- मणि सिन्धुजारच्यो भक्तिवित्तान ॥३०॥ (१८४) (१३७) छप्पय । (७०६) सहस्त्र आस्य उपदेश करि, जगत* उधारन जतन कियो॥ गोपुर कै आरूढ़, ऊँच स्वर, मन्त्र उचाखो । सूते नर परे जागि, बहत्तरि श्रवणनि धाखो ॥ तितनेई गुरुदेव पधति भई न्यारी न्यारी । कुरुतारक शिष्य प्रथम भक्ति वपु मंगलकारी ॥ कृपर्णपाल करुणा स- मुद्र, रामानुज सम नहिं बियो । सहस्र आस्य उपदेश करि, जगत उधारन जतन कियो ॥३१॥ (१८३) वात्तिक तिलक । श्रीसिन्धुजा नाम (श्रीलक्ष्मी) महारानीजी का सम्प्रदाय सब सम्प्रदायों का शिरोमणि, और संसारताप से बचाने के निमित्त भक्ति के मण्डप का चॅदोश्रा रचा हुभा है। श्रीश्रीजी महारानी से श्रीविष्वक सेनजी भगवत्पार्षद फिर उनसे पुण्यपुंज मुनिवर्य नम्रता-नीति-शील "श्रीशठकोप जी, श्री “वोपदेव" जी कि जिनने श्रीमद्भागवत- का पाठान्तरउद्धरन।