पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६२ श्रीभक्तमाल सटीक रूपी लुप्त मक्खन का उद्धार किया, मंगलस्वरूप "श्रीनाथमुनि" जी, तथा परम यशस्वी श्री “पुण्डरीकाक्ष" जी, भक्तिरस के राशि श्री राम- मिश्र" जी, श्रीपरांकुशजी कि जिनका प्रताप प्रगट है, स्वामी श्री ६ "यामुनाचार्य" जी, तथा भाष्यकार स्वामी अनन्तश्री रामानुजजी कि जो संसार के मोहान्धकार हरनेवाले सूर्य उदय हुए ॥ . ___ ऊँचे गोपुर (बृहद्वारकोइल) पर चढ़के अति उच्चस्वस्से, श्रीमन्त्रजी का उच्चारण किया, सोये हुए लोग जाग पड़े बहत्तर ने अपने अपने श्रवण में रामकृपा से धारण किया, इसीसे उतनी ही अर्थात् बहत्तर न्यारी न्यारी पद्धनियाँ गुरुदेव की हुई, जिनमें प्रथम शिष्य श्रीकुरुतारक (श्रीकुरेशजी) को मंगलकारी श्रीभक्तिप्रेमरूप ही जानिये । दीन- पालक और करुणा के सागर स्वामी श्री १०८ "रामानुज" जी के सरिस दूसरा कोई नहीं । आपने सहस्र मुख से उपदेश करके जगत् के उद्धारार्थ उपाय (प्रयत्न) किया । (१३८) टीका । कवित्त । (७०५) . प्रास्य सो बदन नाम, सहस हजार मुख, शेष अवतार जानो वही, सुधि पाई है। गुरु उपदेशि मन्त्र, कह्यो "नीके राख्यो" अन्त्र, जपतहि श्यामजू ने मूरति दिखाई है ॥ करुणानिधान कही “सव भगवत पार्व" चढ़ि दरवाजे सो पुकालो धुनि छाई है। सुनि शिष्य लियो यो बहत्तर हि सिद्ध भए नए भक्ति चोज, यह रीति लेकै गाई है ॥१०७॥ (५२२) . वार्तिक तिलक। आस्य नाम बदन (मुँह), सहस-नाम सहस्र (१०००) यह जान लेना चाहिये कि आप सहस्त्र मुख श्रीशेष के अवतार हैं । श्रीगुरु "गोष्ठी पूर्णाचार्य जी ने आपको मन्त्र देकर भाज्ञा की कि "बड़े यल से अन्तःकरण में गुप्त तथा नीके रक्खो ॥"

जपते ही श्रीभगवान श्यामसुन्दर श्रीरामचन्द्र ने दर्शन दिये । मन्त्र

का यह प्रभाव देख, आपकी करुणा की लहर उठी, जीवों पर दया भाई, जी में कहा कि सब लोग प्रभु को जिससे पावे सो मन्त्र सबको १"आस्य"==मुंह, वदन' । २ "सहस"-१००० ॥