पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८८

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२६९ Homrutan u MMM o nt+reneuminantaghartienMADHAN भक्तिसुधास्वाद तिलक । विराजमान किया। उस बादशाह की लड़की भी भगवत् प्रेमिनी होकर परम पद को गई। एक स्त्रीभक्त विषयी को जिस प्रकार से आपने हरि सम्मुख करके "धनुर्दास" नाम रखा, वह चरित्र, तथा विषयी बनिये को सुमति प्राप्त होने के वृत्तान्त भी, सुनने ही योग्य हैं। छापके सुयश अपार हैं । “प्रपन्नामृत" नामक ग्रंथ में, आपके जन्म से भगवद्धाम यात्रा पर्यंत के मुख्य मुख्य चरित्रं संब, संक्षेप से, वर्णित हैं। अपने सम्प्रदाय के प्रत्येक मूर्ति को अवश्य देखना सुनना चाहिये। कहते हैं कि आप १२० (एक सौ बीस) वर्ष पृथ्वी पर विराजते रहे। याप कलि संवत्सर ४२३८, विक्रमी संवत् ११६४ (कलि- युग की पाँचवीं सहस्राब्दी में)अर्थात् विक्रमी ११६४ तक इस भूमि पर वर्तमान थे ऐसा महानुभावों ने तथा ऐतिहासिक विज्ञों ने लिखा है । ... (३) श्रीविष्णुस्वामीजी। . . श्रीशिवजी ने यह सम्प्रदाय पहिले श्रीप्रेमानन्द (परमानन्द) मुनिजी को उपदेश किया, इसी से यह "शिव (रुद्र) सम्प्रदाय कहा जाता हैं। "श्रीपरमानन्द मुनिजी "श्रीविष्णुकांची" पुरी में हुए । श्राप श्री वरदराज महाराज के मन्दिर में पूजा. सेवा करते थे । भगवान् श्री. वरदराज प्रसन्न होके श्रीशिवजी को श्राज्ञा दी, जिन्होंने मन्त्र उपदेश करके (सात वर्ष के) बालकरूप का ध्यान बताया। इस सम्प्रदाय का श्रीविष्णुस्वामीजी ने प्रचार किया, कि जो दक्षिण देश में ब्राह्मणवंश में हुए.। इसलिये "विष्णुस्वामी सम्प्रदाय” प्रसिद्ध हुधा.. . परम्परा में आप श्रीवरदराज भगवान से पचासवे, श्रीप्रेमानन्द मुनि से ४८ में हैं। आपके परहित तथा उदार चित्त को समझ श्रीजगन्नाथजी ने अपने मन्दिर में चार बार कर दिये।