पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२८९

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२७० +++ + HMIH + Ang+ Man+ श्रीभक्तमाल सटीका (४) श्रीमध्वाचार्यजी। पहिले भगवत् ने यह (माध्य) सम्प्रदाय श्रीब्रह्माजी को उपदेश किया। फिर इसका प्रचार श्रीमध्वा श्रीमध्वाचार्य चार्य स्वामीजी से हुआ। श्रीमध्वा- श्रीनरहयाचार्य चार्यजी द्राविड़ देशमें कांचीपुरी से पश्चिम दक्षिण (नर्ऋत्य) कोने पर । सुबुद्धाचार्य | “उरपी कृष्णा" ग्राम में ब्राह्मण हुए। . । श्रीवेदव्यास . थापने पंजाब देश में राजा को । श्रीनारदजी । परिचय दे, उसका अभिमान नष्ट । श्रीब्रह्माजी । कर, उसको उसके दल समेत हरि सम्मुख कर दिया ॥; श्रीहंसभगवान (१४१) छप्पय । (७०२) चतुर महन्त । चतुर महंत दिग्गज चतुर, भक्ति भूमि दाबे रहै ।। "श्रुतिप्रज्ञा" "श्रुतिदेव" "ऋषभ" "पुहकर” इभ*ऐसे। "श्रुतिधामा "श्रुतिउदधि" "पराजित “वामन” जैसे॥ श्रीरामानुज गुरुबंधु विदित जग मङ्गलकारी । "शिव- संहिता"-प्रणीत ज्ञान सनकादिक सारी ॥इन्दिरा. पद्धति उदारधी, सभा साखि सारँग + कहैं । चतुर महंत दिग्गज x चतुर, भक्ति भूमि. दाबे रहे ॥ (१) ऋषम (२) पुहकर (३) पराजित (४) वामन।

  • "इभ"=-वारण, करि, सिन्धुर, गयन्द, गज, हस्ती, हाथी । । "सारी"-इव, सरिस,

नाई, सरीखा, समान ! * "इन्दिरा पद्धति" श्री श्रीसम्प्रदाय, श्रीलक्ष्मीजी का मार्ग + "सारंग"==मत्त गजेन्द्र, पपीहा, भ्रमर, रामगुणगायक, भक्त । x "दिग्गज चतुर"-४ चारो दिशाओ के हाथी, नाम ।