पृष्ठ:श्रीभक्तमाल.pdf/२९७

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Aar + + -for- श्रीभक्तमाल सटीक । (८) श्रीश्रुतिधामजी। आप पस्मोदार थे और भगवद तथा भगवद्धों में अभेद बुद्धि रखने थे, भेष (ऊर्ध्वपुण्ड, कंठी, माला, छाप) की महिमा भली भाँति जानते मानते थे। आपके गुणों की गिन्ती कौन कर सके ? एक समय साधु- समाज सहित श्रीप्रयागजी जा स्नान कर त्रिवेणी पर हरिकथा कह रहे थे, एक सन्त ने पूछा कि "महाराज, इस संगम पर श्रीसरस्वतीजी का नामही मात्र तो सुना जाता है देखने में तो पाती ही नहीं।" आप यह सुन ध्यान में मग्न हो गए, शीघ्र ही सवों ने देखा कि श्रीश्वेत गंगाधार, श्रीश्याम यमुनाधार के बीच तेजमय अरुणधार श्रीसरस्वतीजी की भी वहीं दर्शनीय है । मकर के वासी दौड़के स्नान करने लगे । सन्तों ने स्वामीजी से निवेदन किया, आप भी उठ प्रणाम कर साधुओं सहित स्नान करने लगे। ऐसे अनेक सुयशों के साथ श्राप जगत में प्रसिद्ध रहे । (6) श्रीश्रुतिउदधिजी* सब सद्गुणों के समुद्र एक दिन श्रीगंगीजी की ओर जाते थे मार्ग में एक राजा की वाटिका में रात्रि निवास किया। उस रात को राजा के भवन में चोरी हुई, चोरों ने भागके उसी उपवन में आपको ध्यान में पा एक माला पहिरा दी। कोतवाल के भटों ने उन्हें देखा, वे आपको पकड़ ले गए, राजा ने वन्दीघर में भेज दिया, तब शीघ्र ही नरेश सीस की पीड़ा से व्याकुल हुआ, किसी प्रकार न छूटी, तव सचिव के कहने से राजा त्राहि त्राहि कर आपके चरणों पर गिरा। आपने तब आँखें खोली और सारा समाचार सुना राजाको पीडारहित कर श्रीराममन्त्रदेकृतार्थ किया। कहाँ तक आपके यश गाए जा सकेंगे।

  • श्रीश्रुतिप्रज्ञ, श्रीश्रुतिदेव, श्रीश्रुतिधाम और श्रीश्रुतिवदधिनी ये चारो महात्मा गुरुभाई है।